फट गया वो बादल, जो घुमड़ रहा था दिल के बंज़र कोनो में,
कभी बनता, कभी बिगड़ता तो कभी जलता दिल के कोनो में,
ज्वाला बुद्धिमता पर हावी थी,
वक़्त की यह नइंसाफी थी,
बरसें जो बादल, पिघल गया यह दिल,
अश्कों के सेलाबों में, भीग गया यह दिल,
फट गया वो बादल, जो घुमड़ रहा था दिल के कोनो में,
कभी बनता, कभी बिगड़ता तो कभी जलता दिल के कोनो में...
बे-मतलब जो यह बात हुई,
कटु-लफ़्ज़ों की बरसात हुई,
मैं जला, कुछ अंग जले,
कुछ अधूरे लफ़्ज़ों के संग जले,
जल उठे वो बादल, कटु-लफ़्ज़ों की बरसात हुई,
जो काले, कुचले, मैले थे, जल कर क्यूँ यूँ ख़ाक हुई,
फट गया वो बादल, जो घुमड़ रहा था कोनो में,
जो बनता था, था बिगड़ता, रहता दिल के कोनो में...