आज, मैं जागा हूँ,
खुद की दुनिया से भागा हूँ,
चीख और पुकार में मैं, चिल्ला भी न पाया,
भीड़ और अंधियारों के बीच, खोता मेरा साया,
आज, खुद को बनते-बिगड़ते लोकपाल सा पाया हूँ,
खुद की दुनिया से भाग आया हूँ...
रोज़ भूख, भीड़ की मारी, यह बेचारी ज़िन्दगी,
हर दुःख-सुख को रोती क्यूँ है ज़िन्दगी,
हर सपने को सच होने की आस में खोती ज़िन्दगी,
आज, खुद को बनते-बिगड़ते लोकपाल सा पाया हूँ,
खुद की दुनिया से भाग आया हूँ,
क्यूँ भीड़ और अंधियारों में खोता मेरा साया,
चीख और पुकार में मैं, चिल्ला भी न पाया,
आज, खुद की दुनिया से भागा हूँ,
लगता है शायद, मैं जागा हूँ...
खुद की दुनिया से भागा हूँ,
चीख और पुकार में मैं, चिल्ला भी न पाया,
भीड़ और अंधियारों के बीच, खोता मेरा साया,
आज, खुद को बनते-बिगड़ते लोकपाल सा पाया हूँ,
खुद की दुनिया से भाग आया हूँ...
रोज़ भूख, भीड़ की मारी, यह बेचारी ज़िन्दगी,
हर दुःख-सुख को रोती क्यूँ है ज़िन्दगी,
हर सपने को सच होने की आस में खोती ज़िन्दगी,
आज, खुद को बनते-बिगड़ते लोकपाल सा पाया हूँ,
खुद की दुनिया से भाग आया हूँ,
क्यूँ भीड़ और अंधियारों में खोता मेरा साया,
चीख और पुकार में मैं, चिल्ला भी न पाया,
आज, खुद की दुनिया से भागा हूँ,
लगता है शायद, मैं जागा हूँ...
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