सीखा मैंने आज,
क्यूँ जीते है लोग ज़िन्दगी,
तिल-तिल कर, गल-गल कर, क्यूँ जीते है ज़िन्दगी,
द्वेष और घर्णा का रूप रख, चली आती है ज़िन्दगी,
क्यूँ अपनी शर्तों पर यूँ नाचती है ज़िन्दगी,
सीखा मैंने आज, क्यूँ जीते है लोग ज़िन्दगी...
भूख से व्याकुल तन,
भोला-भला बचपन,
एक रुपये को सड़क पर रोती क्यूँ है ज़िन्दगी,
अपनी शर्तों पर क्यूँ नाच नाचती ज़िन्दगी,
सीखा मैंने आज, क्यूँ जीते है लोग ज़िन्दगी...
मैं तो लफ़्ज़ों का प्यासा,
मेरे जीने की आशा,
पर सब तो है, लालच में उद्दंड,
अपनी खता मान कर चुप मैं, देख कर हूँ यह दंग,
सीखा मैंने आज, क्यूँ जीते है लोग ज़िन्दगी...
प्यासा मन, प्यासी आशा,
धूमिल होती सब परिभाषा,
लफ़्ज़ों का माया-जाल,
कुबेर, धन से क्यूँ कंगाल,
एक-एक रुपयों को तरसती क्यूँ है ज़िन्दगी,
भूख और मजबूरी से, बेबस क्यूँ है ज़िन्दगी,
सीखा मैंने आज, क्यूँ जीते है लोग ज़िन्दगी...
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