Tuesday, June 19, 2012

बस यूँ ही...

लोग बदले नहीं...
लोग बदले नहीं, बदला वक़्त का मिजाज़ है,
चेहरे वहीँ पुराने है, बदले उनके अंदाज़ है,
मैं ये सोचता हूँ, क्या बदलना वक़्त की हकीकत है?
या यूँ ही परिवर्तन ज़िन्दगी का लिबास है,
लोग बदले नहीं, बदला वक़्त का मिजाज़ है ।

गैरत...
अब भी बेगैरत को गैरत नहीं कि आ कर मुझसे कहे,
बता नाराज़गी की वजह क्या है ।
जल रहा है क्यूँ,
यूँ जलने की वजह क्या है ।।


बेरंग...
जो बेरंग है, उसमे ही सब रंग है,
वर्ना तो दुनिया में सब मलंग है,
खुद की कहाँ फ़िक्र है ज़माने में,
ये तो अश्कों का लिबास है जो छुपाये सारे रंग है ।


आँखों का रंग...
आँखों का रंग, पानी सा निखर गया,
सुर्ख इतना हुआ, नासूर सा नज़र गया,
रात इतनी गहरी थी, तकिये पर सारी दुनिया ही बह गयी मेरी,
और मैं यह तनहा सोचता रहा, जाने क्या असर गया,
आँखों का रंग, पानी सा निखर गया,
सुर्ख इतना हुआ, नासूर का नज़र गया ।

मैं पत्थर हूँ या इंसान...

मैं पत्थर हूँ या इंसान,
मेरी आदत से यह न जान,
शकल मेरी मानव सी है,
पर अन्दर से शैतान,
मैं पत्थर हूँ या इंसान,
मेरी आदत से यह न जान ।

आँखों का किनारा सूख गया...

उन कुचले मैले पन्नों में,
यादों के कितने छंदों में,
आँखों का किनारा सूख गया,
यादों का सहारा रूठ गया,
जो दबे पड़े थे पन्नों में,
यादों के कितने छंदों में,
बातों का सहारा टूट गया,
आँखों का किनारा सूख गया ।

एक आस दबी थी सीने में,
जो दर्द था इतना जीने में,
उन, यादों का सहारा रूठ गया,
बातों का किनारा छूट गया,
कोई अपना जैसे रूठ गया,
जो मिला पुराने पन्नों में,
यादों के कितने छंदों में,
उन, बातों का सहारा छूट गया,
आँखों का किनारा सूख गया ।।

ख़्वाबों का सहारा...

यादों का सहारा होता है, बातों का सहारा होता है,
कुछ दर्द देती बातों में, ख़्वाबों का सहारा होता है,
तुम चले गए मेरी दुनिया से,
यादों के सहारे छोड़ गए,
बस आह भरी इन साँसों ने,
बातों के सिरहाने छोड़ गए,
गीली यादों का सहारा होता है, कुछ बातों का सहारा होता है,
इन दर्द भरी रातों में, तुम्हारी यादों का सहारा होता है ।

Thursday, June 7, 2012

मुझ पत्थर रुपी मानव में...















दर्द भरा है, द्वेष भरा है,
देखो कितना ज़हर भरा है,
मुझ पत्थर रुपी मानव में,
देखो कितना विष भरा है ।
कभी दिल जलता, कभी तन जलता,
कभी लफ्ज़ जलते, कभी मन जलता,
देख बुराई देख कर, जाने क्यूँ मेरा दिल जलता,
दर्द भरा है, द्वेष भरा है,
देखो इतना ज़हर भरा है,
मुझ पत्थर रुपी मानव में,
देखो कितना विष भरा है ।।

Wednesday, June 6, 2012

यादों के है रंग सुनहरे...

















ये चाँद, ये दूरियां, ये बादलों की मजबूरियां,
कभी खोजती आँखें, आँखों में बातें,
तो कभी यादों की मजबूरियां,
ये चाँद, ये दूरियां, ये बादलों की मजबूरियां।
कभी तकती आँखें, आँखों में यादें,
कभी जागती निगाहों में, सपनो की बातें,
तो कभी बातों की मजबूरियां,
ये चाँद, ये दूरियां, ये बादलों की मजबूरियां ।।
कभी रंग-बिरंगी छटा बिखेरे,
कभी स्याह रंगों के है रंग सुनहरे,
कभी अनकही बातों की है मजबूरियां,
ये चाँद, ये दूरियां, ये बादलों की मजबूरियां ।।।

कभी रंग सुनहरे, कभी काले घेरे,
यादों के है कई रंग सुनहरे,
कभी आंसू छलकते, कभी मन पिघल के,
कभी दिल की चोटों के है घाव गहरे,
यादों के है रंग सुनहरे ।
एक याद पुरानी-ताज़ी सी,
कुछ अच्छी सी, कुछ बासी सी,
दिल में घुमड़-घुमड़ करने लगी,
मन में उथल-पुथल करने लगी,
उलझी यादों के पहरे, काले-नीले घेरे,
यादों के है रंग सुनहरे ।।

बूँद-बूँद को है तरसते...














बूँद-बूँद को है तरसते,
फिर भी कैसे नीर बहाते,
सहज-सहज जो इसको रख ले,
फिर न यूँ हाहाकार मचाते ।
कभी तड़पते, कभी बिलखते,
रहते सारे दिन,
जब खूब मिले, तृप्ति से ज्यादा,
व्यर्थ करे पलछिन,
बूँद-बूँद को है तरसते,
फिर भी कैसे नीर बहाते,
सहज-सहज जो इसको रख ले,
फिर न यूँ हाहाकार मचाते ।।

कभी गाड़ी पर व्यर्थ करे,
धरती का अनर्थ करे,
जब दो बूँद को तरसे मन,
चेहरों पर सूखा यौवन,
बूँद-बूँद को है तरसते,
फिर भी कैसे नीर बहाते,
सहज-सहज जो इसको रख ले,
फिर न यूँ हाहाकार मचाते ।।।

यूँ ही राह चलते...



















दो राही...
एक रास्ता खोजते राही,
कुछ सूझते, कुछ पूछते,
आँखों ही आँखों में, मंजिल की तलाश में रहते,
आस की बाट जोहते, एक रास्ता खोजते रही ।
कभी होते भीड़ में गुम,
कभी रहते वो गुम-सुम,
आँखों से मंजिलों को खोजते दो राही,
एक रास्ता खोजते राही ।।
कभी भीड़ की धुल में,
कभी ज़िन्दगी की मशगूल में,
खोते राही,
एक रास्ता खोजते राही ।
कभी जाने-पहचाने से,
कभी चेहरे अनजाने से,
एक रास्ता खोजते राही ।।
एक अनजानी शकल में,
कभी सब्र, कभी बे-सब्र से,
मंजिलों के निशाँ खोजते दो राही,
एक रास्ता खोजते राही ।।।

ये लफ्ज़ नहीं...
ये लफ्ज़ नहीं, जज़्बात है,
कुछ उलझे से ख्यालात है,
कभी खोजते, कभी सोचते,
अपने होने की वजह,
कभी देखते, कभी सीखते,
अपने खोने की वजह,
ये अनसुलझे ख्यालात है,
ये लफ्ज़ नहीं, जज़्बात है ।
कभी राही बन भटकते,
कभी सुर बन चहकते,
कभी बजते ताल से,
कभी सुर-झंकार से,
ये उलझे ख्यालात है,
ये लफ्ज़ नहीं, जज़्बात है ।।
कभी पंछियों से चहकते,
कभी बागी से भटकते,
कभी इबादत से बोल,
कभी खून से खौलते,
ये खुद में उलझे ख्यालात है,
ये लफ्ज़ नहीं जज़्बात है ।।।

बातें गुज़र कर रह गयी...
न मैं गुज़रा, न तू गुज़रा,
बस यादें गुज़र कर रह गयी,
कुछ बातें दिल में उतर कर रह गयी,
कल वक़्त गुज़रा, बातें गुज़र कर रह गयी,
न तू गुज़रा, न मैं गुज़रा,
बस आहें गुज़र कर रह गयी ।
कभी तू रुका, कभी मैं रुका,
वक़्त न रुक कर रह गया,
बस आहें सिमट कर रह गयी,
कुछ यादें सिमट कर रह गयी,
न मैं गुज़रा, न तू गुज़रा,
बस बातें गुज़र कर रह गयी ।।

चंचल मन...





















चंचल मन, कितनी कौतुहल,
लफ़्ज़ों, यादों, बातों का दाएरा, दिल में उथल-पुथल,
कुछ सवाल करते खुद से, और जवाब मुझसे मांगती,
कुछ यादें संभाले हुए, दिल की दीवारों पर है टांगती,
अपनी ही उधेड़बुन में मगन, दिल में हलचल,
चंचल मन, कितनी कौतुहल,
होंठ सिले बैठी, मासूमियत से ताकती,
ज़हन परेशान, सवालों से लथ-पथ नज़रों से झांकती,
ये लफ़्ज़ों का दाएरा, दिल में उथल-पुथल,
चंचल मन, कितनी कौतुहल ।

कुछ काले-गोरे चेहरे,
चेहरों पर यादों के घेरे,
झुर्रियों से झांकता बचपन,
ज़िन्दगी की दौड़ में खोता यौवन,
बातों का दाएरा, दिल में हलचल,
चंचल मन, कितनी कौतुहल,
ज़िन्दगी का सफ़र, क्यूँ है रुकता नहीं,
चलता ही रहता हूँ, मैं भी थकता नहीं,
यादों में खुद से मुलाकातों का यौवन,
इस बे-मतलब दौड़ में, मेरा खोया बचपन,
यादों का दरिया, दिल में मंथन,
चंचल मन, कितनी कौतुहल ।।।

अनजान मुसाफिर...


















अनजान मुसाफिर ने मुझको,
कभी रोका, कभी टोका,
पुछा मुझसे क्या करते हो,
यूँ रेलों में क्यूँ फिरते हो,
मैं बोला सज्जन-इ-मानुस,
लोगों के चेहरे पढ़ता हूँ,
यादों को ज़िंदा करता हूँ,
एक अनजान मुसाफिर ने मुझको,
कभी रोका, कभी टोका ।

कभी बैठा मेरे इधर-उधर,
कभी झाँका मेरे लेखन पर,
पुछा मुझसे क्या करते हो,
यूँ रेलों में क्यूँ फिरते हो,
मैं बोला सज्जन-इ-मानुस,
लोगों के चेहरे पढ़ता हूँ,
यादों को ज़िंदा करता हूँ,
एक अनजान मुसाफिर ने मुझको,
कभी रोका, कभी टोका ।।

Tuesday, June 5, 2012

मेरी कोई पहचान नहीं...





















लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम?
मेरी कोई पहचान नहीं,
भीड़ में खोया रहता हूँ,
मेरा कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं ।

एक चेहरा हूँ अनजाना सा,
कुछ जाना सा, पहचाना सा,
मेरा वजूद, न नाम नहीं,
एक चेहरा हूँ गुमनाम सा,
मेरी कोई पहचान नहीं ।।

रहता हूँ सबके बीच,
पर सब मुझसे अनजान है,
कुछ दोस्त समझते है दुश्मन,
मेरा कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम,
मेरी कोई पहचान नहीं ।

भीड़ का हिस्सा हो कर भी,
हूँ भीड़ से मैं जुदा-जुदा,
कुछ रहते मुझसे खुश-खुश, कुछ रहते मुझसे खफ़ा-खफ़ा,
लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम,
मेरी कोई पहचान नहीं ।।

कभी ढोंगी, कभी पाखंडी सा,
कभी हूँ शिव-अखंडी सा,
लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम,
मैं कहता, मेरी कोई पहचान नहीं ।।।

गीली यादों के ताज...

















गुज़र गया बादल, छोड़ गया गीली बूंदों के साज़,
सोंधी मिट्टी की खुशबू, गीली यादों के ताज,
बादल जो गुज़रा, संग एक वक़्त गुज़र गया,
तनहा मैं देखता रहा, यादों का साहिल ठहर गया,
कुछ बूँदें तन पर गिरी और भीग गया मन,
आँखें नम थी, दिल में थी यादों की सिरहन,
गुज़र गया बादल, छोड़ गया गीली बूंदों के साज़,
सोंधी मिट्टी की खुशबू, गीली यादों के ताज ।

कुछ छलकी, कुछ महकी बूँदें,
कुछ बिखरी, कुछ चहकी बूँदें,
भीगता रहा तन, पर जल रहा था मन,
भीगते तन में जागी यादों की सिरहन,
गुज़र गया बादल, छोड़ गया गीली बूंदों के साज़,
सोंधी मिट्टी की खुशबू, गीली यादों के ताज ।।