लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम?
मेरी कोई पहचान नहीं,
भीड़ में खोया रहता हूँ,
मेरा कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं ।
एक चेहरा हूँ अनजाना सा,
कुछ जाना सा, पहचाना सा,
मेरा वजूद, न नाम नहीं,
एक चेहरा हूँ गुमनाम सा,
मेरी कोई पहचान नहीं ।।
रहता हूँ सबके बीच,
पर सब मुझसे अनजान है,
कुछ दोस्त समझते है दुश्मन,
मेरा कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं,
लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम,
मेरी कोई पहचान नहीं ।
भीड़ का हिस्सा हो कर भी,
हूँ भीड़ से मैं जुदा-जुदा,
कुछ रहते मुझसे खुश-खुश, कुछ रहते मुझसे खफ़ा-खफ़ा,
लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम,
मेरी कोई पहचान नहीं ।।
कभी ढोंगी, कभी पाखंडी सा,
कभी हूँ शिव-अखंडी सा,
लोग पूछते है मुझसे कौन हो तुम,
मैं कहता, मेरी कोई पहचान नहीं ।।।

No comments:
Post a Comment