Tuesday, June 19, 2012

बस यूँ ही...

लोग बदले नहीं...
लोग बदले नहीं, बदला वक़्त का मिजाज़ है,
चेहरे वहीँ पुराने है, बदले उनके अंदाज़ है,
मैं ये सोचता हूँ, क्या बदलना वक़्त की हकीकत है?
या यूँ ही परिवर्तन ज़िन्दगी का लिबास है,
लोग बदले नहीं, बदला वक़्त का मिजाज़ है ।

गैरत...
अब भी बेगैरत को गैरत नहीं कि आ कर मुझसे कहे,
बता नाराज़गी की वजह क्या है ।
जल रहा है क्यूँ,
यूँ जलने की वजह क्या है ।।


बेरंग...
जो बेरंग है, उसमे ही सब रंग है,
वर्ना तो दुनिया में सब मलंग है,
खुद की कहाँ फ़िक्र है ज़माने में,
ये तो अश्कों का लिबास है जो छुपाये सारे रंग है ।


आँखों का रंग...
आँखों का रंग, पानी सा निखर गया,
सुर्ख इतना हुआ, नासूर सा नज़र गया,
रात इतनी गहरी थी, तकिये पर सारी दुनिया ही बह गयी मेरी,
और मैं यह तनहा सोचता रहा, जाने क्या असर गया,
आँखों का रंग, पानी सा निखर गया,
सुर्ख इतना हुआ, नासूर का नज़र गया ।

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