दो राही...
एक रास्ता खोजते राही,
कुछ सूझते, कुछ पूछते,
आँखों ही आँखों में, मंजिल की तलाश में रहते,
आस की बाट जोहते, एक रास्ता खोजते रही ।
कभी होते भीड़ में गुम,
कभी रहते वो गुम-सुम,
आँखों से मंजिलों को खोजते दो राही,
एक रास्ता खोजते राही ।।
कभी भीड़ की धुल में,
कभी ज़िन्दगी की मशगूल में,
खोते राही,
एक रास्ता खोजते राही ।
कभी जाने-पहचाने से,
कभी चेहरे अनजाने से,
एक रास्ता खोजते राही ।।
एक अनजानी शकल में,
कभी सब्र, कभी बे-सब्र से,
मंजिलों के निशाँ खोजते दो राही,
एक रास्ता खोजते राही ।।।
ये लफ्ज़ नहीं...
ये लफ्ज़ नहीं, जज़्बात है,
कुछ उलझे से ख्यालात है,
कभी खोजते, कभी सोचते,
अपने होने की वजह,
कभी देखते, कभी सीखते,
अपने खोने की वजह,
ये अनसुलझे ख्यालात है,
ये लफ्ज़ नहीं, जज़्बात है ।
कभी राही बन भटकते,
कभी सुर बन चहकते,
कभी बजते ताल से,
कभी सुर-झंकार से,
ये उलझे ख्यालात है,
ये लफ्ज़ नहीं, जज़्बात है ।।
कभी पंछियों से चहकते,
कभी बागी से भटकते,
कभी इबादत से बोल,
कभी खून से खौलते,
ये खुद में उलझे ख्यालात है,
ये लफ्ज़ नहीं जज़्बात है ।।।
बातें गुज़र कर रह गयी...
न मैं गुज़रा, न तू गुज़रा,
बस यादें गुज़र कर रह गयी,
कुछ बातें दिल में उतर कर रह गयी,
कल वक़्त गुज़रा, बातें गुज़र कर रह गयी,
न तू गुज़रा, न मैं गुज़रा,
बस आहें गुज़र कर रह गयी ।
कभी तू रुका, कभी मैं रुका,
वक़्त न रुक कर रह गया,
बस आहें सिमट कर रह गयी,
कुछ यादें सिमट कर रह गयी,
न मैं गुज़रा, न तू गुज़रा,
बस बातें गुज़र कर रह गयी ।।

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