Wednesday, June 6, 2012

अनजान मुसाफिर...


















अनजान मुसाफिर ने मुझको,
कभी रोका, कभी टोका,
पुछा मुझसे क्या करते हो,
यूँ रेलों में क्यूँ फिरते हो,
मैं बोला सज्जन-इ-मानुस,
लोगों के चेहरे पढ़ता हूँ,
यादों को ज़िंदा करता हूँ,
एक अनजान मुसाफिर ने मुझको,
कभी रोका, कभी टोका ।

कभी बैठा मेरे इधर-उधर,
कभी झाँका मेरे लेखन पर,
पुछा मुझसे क्या करते हो,
यूँ रेलों में क्यूँ फिरते हो,
मैं बोला सज्जन-इ-मानुस,
लोगों के चेहरे पढ़ता हूँ,
यादों को ज़िंदा करता हूँ,
एक अनजान मुसाफिर ने मुझको,
कभी रोका, कभी टोका ।।

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