बूँद-बूँद को है तरसते,
फिर भी कैसे नीर बहाते,
सहज-सहज जो इसको रख ले,
फिर न यूँ हाहाकार मचाते ।
कभी तड़पते, कभी बिलखते,
रहते सारे दिन,
जब खूब मिले, तृप्ति से ज्यादा,
व्यर्थ करे पलछिन,
बूँद-बूँद को है तरसते,
फिर भी कैसे नीर बहाते,
सहज-सहज जो इसको रख ले,
फिर न यूँ हाहाकार मचाते ।।
कभी गाड़ी पर व्यर्थ करे,
धरती का अनर्थ करे,
जब दो बूँद को तरसे मन,
चेहरों पर सूखा यौवन,
बूँद-बूँद को है तरसते,
फिर भी कैसे नीर बहाते,
सहज-सहज जो इसको रख ले,
फिर न यूँ हाहाकार मचाते ।।।

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