Monday, July 29, 2013

कुछ देर से मिली रौशनी...















आज, कुछ देर से मिली रौशनी,
खाली सड़कों पर उछालती-कूदती,
मेरे तन को चूमती,
कुछ देर से मिली रौशनी ।

शायद, कुछ साथ लायी थी, खाली सड़कों के किनारे,
एक औरत की शौल में लिपटी, पिघली सी,
सोंधी सी गर्मी का एहसास लिए,
खाली सड़कों पर उछालती-कूदती,
मेरे तन को चूमती,
कुछ देर से मिली रौशनी ।।

राहें, तनहा हो कर भी घिरी थी अजनबी चेहरों से,
मुस्कुराते, चेहरों पर चेहरे से,
खाली रास्तों में उड़ती धुल के थपेड़ों में,
मेरे तन से लिपटी रौशनी,
खाली सड़कों पर उछालती-कूदती,
मेरे तन को चूमती,
कुछ देर से मिली रौशनी ।।।

ख्यालों में...

अँधेरे में, उजाले में,
अपने ही ख्यालों में,
कुछ उलझे से, कुछ सुझले से,
अपने ही सवालों में,
पड़े है ।

कुछ अधूरी सी, कुछ पूरी सी,
कहानी एक जरूरी सी,
कुछ अनकही, कुछ अनसुनी,
कहानी एक पूरी सी,
सुनाने को बेताब यहाँ,
खड़े है,
पड़े है ।।

मुश्किल से हालात में,
उलझे से जज़्बात में,
यादों का पिटारा लिए,
पड़े है,
खड़े है ।।।

मेरी कहानी...
















अजीब सा हूँ मैं, उलझी मेरी कहानी,
छोटा सा हूँ मैं, शायद बचपन की निशानी,
रातों को जगता हूँ मैं, नींद हुई बेगानी,
अजीब सा हूँ मैं, उलझी मेरी कहानी ।

आज, उसने सवाल किया,
मैंने उलझा सा जवाब दिया,
चेहरे पर झूठी हंसी ला कर,
बात न उसकी मानी,
उलझा सा हूँ मैं, उलझी मेरी कहानी ।।

कुछ बेज़ुबान से…

आदत-ए-शराब ही अच्छी थी,
क्यूंकि, बहुत मुफ़लिसी है इस दिल्लगी में ।

लम्हा-ए-उम्र ही न मिला दिल्लगी को,
वर्ना, आशिक़ तो हम भी उम्दा थे ।

मिली, किसको वफ़ाये है ज़माने में,
हर एक ही मारा है किसी गम का ।


लिपटे थे रात की सरगोशी में,
और सुबह तारों का काफ़िला गुज़र गया ।

और वो दिन भी आ गया जिसकी आस लिए जीते थे,
तेरी आरज़ू में एक और साल जी लिया ।

आतिश-ए-इश्क़ में आज वो भी जले,
जो कल तक काफ़िर बने फिरते थे ।

एक दिन बिखर ही जाता है,
तिल-तिल कर मरने वाला ।

बड़ी बदरंग सी ज़िन्दगी है तेरे जाने के बाद,
इतनी मह्रूमियत कभी खुद से न हुई ।

नफ़रत, किसकी अच्छी है यहाँ अभिनव,
हम तो ज़िन्दा है इक मोहोब्बत के लिए ।

थोड़ा लिखता हूँ, कम लिखता हूँ,
आज-कल लफ़्ज़ों से दिल्लगी अच्छी नहीं लगती ।

अपनी हसरतों को ख़त्म करके,
मैंने खुद को मनाना सीख लिया ।

उल्फ़त-ए-इंतज़ार ख़त्म ही नहीं होता,
जाने क्या है मोहोब्बत ऐसी ।

उधारी का मंज़र भी क्या खूब था,
एक रोज़ ऐसा भी गुज़रा, जिसमे रूह भी गिरवी हो गयी ।

 कैसे रोकू मैं अपने दिल को,
जाने क्यूँ तेरी ओर खीचने लगा है ये ।

तकलीफ़ सिर्फ़ इतनी सी ही हुई,
कि, वो उन गैरों से मिले जो उन्हें अपने से लगे ।

बना लो आशिक़ हमको भी,
कोई तो सच्चा मुरीद तुमको भी मिले ।

 किसी को रंजिशें मिली, किसी को वफ़ा,
ये इश्क़ बहुत ही बद-किस्मतों का हुआ ।

आ ही जायेगी नींद देर-सवेर,
अब रातों को जागने के आदी हो गए है हम ।

Monday, July 22, 2013

चलते-चलते मुझको...
















चलते-चलते मुझको एक याद पुरानी आती है,
कुछ बीते-गुज़रे लम्हों की वो बात पुरानी लाती है,
वो धुंधले से यादों के पन्ने, पलट-पलट रह जाते है,
वो तेरी हँसती बातों में, यूँ घुल-मिल से जाते है,
चलते-चलते मुझको एक याद पुरानी आती है,
कुछ बीते-गुज़रे लम्हों की वो बात पुरानी लाती है ।

एक चेहरा है जो धुंधला,
यादों में उलझा-सुलझा सा,
कोई अपना सा, कोई सपना सा,
भूला-बिसरा कोई अपना सा,
जब भी पलट कर देखू तो,
वो दूर नज़र बहुत वो आती है,
चलते-चलते मुझको एक याद पुरानी आती है,
कुछ बीते-गुज़रे लम्हों की वो बात पुरानी लाती है ।

Friday, July 19, 2013

इश्क़ का कारोबार...

इतने आशिक़ है यहाँ,
ये इश्क़ का कारोबार अच्छा है । 

जज़्बातों का देखा है होते मैंने सौदा,
आज कल खरीदार अच्छे मिलते है ।

बड़ी कीमत लगा खरीदी जाती है आशिक़ी,
मुझ जैसे मुफ़लिस न जाने दो दिलों का मेल ।

कीमत कौन चुकाता है ज़माने में इश्क़ की,
कुछ नीलाम हुए है, और कुछ का मुक्कमल कमा बाकी है ।

मिलता कहाँ है आशिक़ मुझसा अभिनव,
जिसको, कीमत-ए-जान भी कोई मोल नहीं ।

मेरी तो आरज़ू-ए-इश्क़ है बस इतनी,
कि, जितनी भी सांसें लूं, बस तेरी हो ।

गर्दिश-ए-इश्क़ भी कैसा यारों,
कि, खुद की साँसों पर ही गुमां नहीं ।

उसने आँखों से पिला कर दीवाना बना दिया,
वर्ना, आदमी तो हम भी काम के थे कभी ।

कौन कमबख्त जीता है किसी यार को सताने को,
हम तो बस ज़िन्दा है, उसका प्यार पाने को,
आतिश-ए-इश्क़ की भी देखी हमने,
पर, उस सा नहीं मिला रूह जलाने को ।

भीगे तो वो भी मेरी तिश्नगी में अभिनव,
इतना भी गिला-ए-गम छूटा नहीं ।

Wednesday, July 17, 2013

बदल दो...

चाहे तो सारा जहान बदल दो,
सारी ज़मीन, सारा आस्मां बदल दो,
जिन लोगों से बगावत की बू आती है,
उन मुफलिसों का ईमान बदल दो,
चाहे तो सारा जहान बदल दो,
सारा का सारा हिन्दुस्तान बदल दो ।

रात गुज़री थी गीले तकिये के सिरहाने,
और, मैं न जानू कब सुबह हो गयी ।

सारी रात आवाज़ें आती रही मेरे कानों में,
मेरी रूह मुझसे ही बुद-बुदाती रही कानों में,
पर मैं न मिला, हुआ था कहीं गुम सा,
बस लाश की तरह पड़ा रहा, उठती रही आवाज़ें कानों में ।

वक़्त ही नहीं था मेरे पास मेरे लिए,
मैं तो तुझ में शामिल था कुछ इस तरह ।

कितने सपने सजाते है हर रोज़,
तेरे साथ पाने को,
कितना मनाते है खुदा को रोज़,
तुझे ज़िन्दगी में ता-उम्र लाने को,
ये मैं जानता हूँ या मेरी तन्हाई का तसव्वुर,
कितना जीता है तेरे बिना,
तेरा साथ पाने को । 

मुशायरे से...

कोई गहरा नहीं स्याह-ए-इश्क़-समुन्दर,
बस एक रफ़्तार से गोते मारे जा ।

चाहतें ही तो है ज़िन्दगी तरकीब-ए-रकीब की,
कौन जीता है यहाँ उम्र बसर होने तक ।

गम जुदाई का किसको है यहाँ,
हम तो नाराज़ है खुद के खफ़ा होने से ।

बहुत अजीब सी है ज़िन्दगी,
हर दिन एक अलग एहसास रखती है मेरे लिए ।

बहुत खूबसूरती से उकेरे है लफ्ज़ तेरे लिए,
ये कोई शेर नहीं मेरी दिल्लगी है ।

अजब सा है रिश्ता तेरा-मेरा,
थाम भी नहीं सकता, छोड़ भी नहीं पाता ।

हैरान हूँ ये जान कर, कि डरते है मुझसे लोग,
मैं तो बस प्यार का खजाना बाटा करता था ।

तुझको भी होगा एहसास-ए-मोहोब्बत,
मैं तो आफ़ताब हूँ जलता ज़र्रे-ज़र्रे में ।

लिख लीजिये अपना हाल-ए-दिल कागज़ों पर,
मैं तो पल-पल की ख़बर जाने हूँ ।

न समझे मुझे कोई, मैं बदलता नहीं, 
एक कल हूँ आगे बढ़ता सा, मैं पलटता नहीं,
मुश्किलें लाख मिले ज़माने में, मैं रुकता नहीं,
न समझे मुझे कोई, पर मैं बदलता नहीं । 

चाहतें कुछ ऐसी भी थी कि खुद ही राख़ हो गए,
और, आहटें कुछ ऐसी भी थी कि खुद ही ख़ाक हो गए,
इश्क़ की बदलिया कुछ इस तरह बदली,
बदला मैं? या आशिक़ ही ख़ाक हो गए ।

दास्तान...

मोहब्बत की ये इन्तेहां हो गयी,
खुद ज़र्रे-ज़र्रे में फ़ना हो गयी,
मुझ रकीब को कर दिया बाग़ी,
और, एक दिन मुझसे ही खफ़ा हो गयी ।

शायरों की भी है खूब दास्तान,
कोई आशिक़ कहता, कोई कहता मुफ़्लिस इंसान,
बड़ी मौसिकी में उठते है लफ्ज़,
वो, जो इन्हें अभिनव करते है बदनाम,
शायरों की भी है खूब दास्तान |

बारिश की बदलियाँ बदल रही है,
मौसम की रौनकें सवर रही है,
एक अजब सी सादगी है तेरी हंसी में,
और, तेरे हँसते ही मेरी दुनिया सवर रही है । 

एक उलझन है जो सुलझती नहीं,
बस अन्दर से है काटती,
सवाल उठते है ज़ेहन में,
जो रूह को है बाटती,
तलब उठती है कुछ पाने की,
जिस्म लाश सी हो ताकती,
एक उलझन है जो सुलझती नहीं,
बस अन्दर से है काटती ।

देखा है...

मैंने, पल-पल बदलते देखा है,
हर कल सवारते देखा है,
मत खो हौसला-ए-इश्क़ ऐसे,
मैंने परियों को भी इश्क़ करते देखा है,
गर! सादगी में शिद्दत आशिक़ों सी हुई,
गर! तेरी आरज़ू किसी रूह को छुई,
मैंने पल-पल सवारते देखा है,
मैंने हर कल बदलते देखा है,
मत खो हौसला-ए-इश्क़ ऐसे,
मैंने परियों को भी इश्क़ करते देखा है ।

बारिश की बदलियाँ बदल रही है,
घटाए भी तुम्हे देख सवर रही है,
मत लहरों आज इतना आँचल,
यहाँ किसी की नियत बिगड़ रही है ।

मेरे ज़हन में अब तेरा ही ख़्याल है,
जाने क्यूँ आज उलझे सवाल है,
कहीं पिघल न जाऊं मैं भी,
और इसी गम से बचने का मलाल है ।

एक शोर लिख रहा हूँ,
घनघोर लिख रहा हूँ,
आज दिखा है कोई आशिक़ मुझसा अभिनव,
उसकी शान में कुछ और लिख रहा हूँ,
कांच सा टूटा हर ओर दिख रहा हूँ,
पर, अपनी ही श्याही से पुरजोर लिख रहा हूँ,
घनघोर लिख रहा हूँ,
एक शोर लिख रहा हूँ,
आज दिखा है कोई आशिक़ मुझसा अभिनव,
उसकी शान में कुछ और लिख रहा हूँ ।

कोई शोहरत नहीं, कोई मोहरत नहीं,
बस लफ्ज़ ही है कोई सोहबत नहीं,
दिल की गलियों से उठती आवाजें,
कोई तोहमत नहीं, कोई नेयामत नहीं ।

तोहमतें हज़ार लगेंगी,
कई कई बार लगेंगी,
आज उतरे हो आशिक़-ए-समुन्दर में,
ये नैय्या भी एक दिन पार लगेगी ।

Thursday, July 11, 2013

सिर्फ शेर नहीं है ये...

आराम-फ़रोश सी ज़िन्दगी नहीं चाहिए थी मुझे,
मैं तो बंजारा था फिरता बादल सा ।

सिर्फ शेर नहीं है ये, मेरी ज़िन्दगी का हलफ़नामा है,
बड़ी सादगी से वाह-वाह कर फ़जीहत न करो अभिनव ।

वो करवटें बदलते रहते है रात भर,
और इलज़ाम मेरे सर ड़ाल देते है हर रात के क़त्ल का ।

वो हसरतें मिटाए है बार-बार लिख-लिख कर,
कहते नहीं मुझसे हाल-ए-दिल अपना ।

जागते रहे वो मेरी यादें लिए,
और मैं दफ़न था उनके ख़्यालों में कहीं ।

वो पलटते है बातें इस तरह,
जैसे जुल्फें सवार रहे हो ।

इश्क़ की ख़लिश भी क्या चीज़ है अभिनव,
एक आस पर टिकी रहती है सारी ज़िन्दगी ।

कोई गहरा नहीं स्याह-ए-इश्क़-समुन्दर,
बस एक रफ़्तार से गोते मारे जा ।

बहुत खूबसूरती से सवारा है उसने बालों को,
जैसे कोई दुनिया उसमे छुपाये हुए हो ।

लम्हे...

लम्हे, तो तब ही थम गए थे तेरे मेरे दरमियान,
जिस रोज़ तुम जा कर मुड़े नहीं ।

बड़ी उलझनों भरी है राहें आशिकी की,
कुछ ही रांझे पहुंचे है मंज़िलों तक ।

तोड़ दो वो ज़िद जो मिलने नहीं देती,
कुछ टूटने से दिल संभालता है तो अच्छा है ।

मौज उठी, बहार उठी, जाने कई बार उठी,
मैं न उठा, कलम न उठी, हसरतें हज़ार उठी,
तुम न रुके, मैं न रुका, घड़ी की सुई कई बार रुकी,
मौज उठी, बहार उठी, जाने कई बार उठी,
मैं न उठा, कलम न उठी, हसरतें हज़ार उठी ।

"अभिनव"

बदनाम हुए फिरते है मजनू हज़ार,
एक हीर ही नहीं मिलती पिघलने को ।

साहिल से प्यासे गुज़ारा नहीं करते,
कुछ कश्तियों को किनारे नहीं मिलते,
बदलते नहीं है कुछ लोग,
वर्ना, लोगों में "अभिनव" आवारे नहीं मिलते ।

बहुत बेरंग से देखे है आशिक़ ज़माने में,
कोई ज़र्रा नहीं मिलता "अभिनव" आफ़ताब सा ।

कौन रुकता है तेरे या मेरे लिए,
वक़्त चलता है नये सवेरे के लिए,
मैं रुक भी जाता हूँ कहीं राहों में,
वक़्त रुकता नहीं मेरे लिए ।

गौर-ए-तलब हो कर तोहफ़ा-ए-उम्र क्यूँ गुज़ार देते हो,
हमसफ़र और भी मुकम्मिल मिलेंगे उम्र-ए-ज़माने में ।