Thursday, July 11, 2013

लम्हे...

लम्हे, तो तब ही थम गए थे तेरे मेरे दरमियान,
जिस रोज़ तुम जा कर मुड़े नहीं ।

बड़ी उलझनों भरी है राहें आशिकी की,
कुछ ही रांझे पहुंचे है मंज़िलों तक ।

तोड़ दो वो ज़िद जो मिलने नहीं देती,
कुछ टूटने से दिल संभालता है तो अच्छा है ।

मौज उठी, बहार उठी, जाने कई बार उठी,
मैं न उठा, कलम न उठी, हसरतें हज़ार उठी,
तुम न रुके, मैं न रुका, घड़ी की सुई कई बार रुकी,
मौज उठी, बहार उठी, जाने कई बार उठी,
मैं न उठा, कलम न उठी, हसरतें हज़ार उठी ।

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