मैंने, पल-पल बदलते देखा है,
हर कल सवारते देखा है,
मत खो हौसला-ए-इश्क़ ऐसे,
मैंने परियों को भी इश्क़ करते देखा है,
गर! सादगी में शिद्दत आशिक़ों सी हुई,
गर! तेरी आरज़ू किसी रूह को छुई,
मैंने पल-पल सवारते देखा है,
मैंने हर कल बदलते देखा है,
मत खो हौसला-ए-इश्क़ ऐसे,
मैंने परियों को भी इश्क़ करते देखा है ।
बारिश की बदलियाँ बदल रही है,
घटाए भी तुम्हे देख सवर रही है,
मत लहरों आज इतना आँचल,
यहाँ किसी की नियत बिगड़ रही है ।
मेरे ज़हन में अब तेरा ही ख़्याल है,
जाने क्यूँ आज उलझे सवाल है,
कहीं पिघल न जाऊं मैं भी,
और इसी गम से बचने का मलाल है ।
एक शोर लिख रहा हूँ,
घनघोर लिख रहा हूँ,
आज दिखा है कोई आशिक़ मुझसा अभिनव,
उसकी शान में कुछ और लिख रहा हूँ,
कांच सा टूटा हर ओर दिख रहा हूँ,
पर, अपनी ही श्याही से पुरजोर लिख रहा हूँ,
घनघोर लिख रहा हूँ,
एक शोर लिख रहा हूँ,
आज दिखा है कोई आशिक़ मुझसा अभिनव,
उसकी शान में कुछ और लिख रहा हूँ ।
कोई शोहरत नहीं, कोई मोहरत नहीं,
बस लफ्ज़ ही है कोई सोहबत नहीं,
दिल की गलियों से उठती आवाजें,
कोई तोहमत नहीं, कोई नेयामत नहीं ।
तोहमतें हज़ार लगेंगी,
कई कई बार लगेंगी,
आज उतरे हो आशिक़-ए-समुन्दर में,
ये नैय्या भी एक दिन पार लगेगी ।
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