Thursday, July 11, 2013

सिर्फ शेर नहीं है ये...

आराम-फ़रोश सी ज़िन्दगी नहीं चाहिए थी मुझे,
मैं तो बंजारा था फिरता बादल सा ।

सिर्फ शेर नहीं है ये, मेरी ज़िन्दगी का हलफ़नामा है,
बड़ी सादगी से वाह-वाह कर फ़जीहत न करो अभिनव ।

वो करवटें बदलते रहते है रात भर,
और इलज़ाम मेरे सर ड़ाल देते है हर रात के क़त्ल का ।

वो हसरतें मिटाए है बार-बार लिख-लिख कर,
कहते नहीं मुझसे हाल-ए-दिल अपना ।

जागते रहे वो मेरी यादें लिए,
और मैं दफ़न था उनके ख़्यालों में कहीं ।

वो पलटते है बातें इस तरह,
जैसे जुल्फें सवार रहे हो ।

इश्क़ की ख़लिश भी क्या चीज़ है अभिनव,
एक आस पर टिकी रहती है सारी ज़िन्दगी ।

कोई गहरा नहीं स्याह-ए-इश्क़-समुन्दर,
बस एक रफ़्तार से गोते मारे जा ।

बहुत खूबसूरती से सवारा है उसने बालों को,
जैसे कोई दुनिया उसमे छुपाये हुए हो ।

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