Wednesday, July 17, 2013

मुशायरे से...

कोई गहरा नहीं स्याह-ए-इश्क़-समुन्दर,
बस एक रफ़्तार से गोते मारे जा ।

चाहतें ही तो है ज़िन्दगी तरकीब-ए-रकीब की,
कौन जीता है यहाँ उम्र बसर होने तक ।

गम जुदाई का किसको है यहाँ,
हम तो नाराज़ है खुद के खफ़ा होने से ।

बहुत अजीब सी है ज़िन्दगी,
हर दिन एक अलग एहसास रखती है मेरे लिए ।

बहुत खूबसूरती से उकेरे है लफ्ज़ तेरे लिए,
ये कोई शेर नहीं मेरी दिल्लगी है ।

अजब सा है रिश्ता तेरा-मेरा,
थाम भी नहीं सकता, छोड़ भी नहीं पाता ।

हैरान हूँ ये जान कर, कि डरते है मुझसे लोग,
मैं तो बस प्यार का खजाना बाटा करता था ।

तुझको भी होगा एहसास-ए-मोहोब्बत,
मैं तो आफ़ताब हूँ जलता ज़र्रे-ज़र्रे में ।

लिख लीजिये अपना हाल-ए-दिल कागज़ों पर,
मैं तो पल-पल की ख़बर जाने हूँ ।

न समझे मुझे कोई, मैं बदलता नहीं, 
एक कल हूँ आगे बढ़ता सा, मैं पलटता नहीं,
मुश्किलें लाख मिले ज़माने में, मैं रुकता नहीं,
न समझे मुझे कोई, पर मैं बदलता नहीं । 

चाहतें कुछ ऐसी भी थी कि खुद ही राख़ हो गए,
और, आहटें कुछ ऐसी भी थी कि खुद ही ख़ाक हो गए,
इश्क़ की बदलिया कुछ इस तरह बदली,
बदला मैं? या आशिक़ ही ख़ाक हो गए ।

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