Wednesday, July 17, 2013

दास्तान...

मोहब्बत की ये इन्तेहां हो गयी,
खुद ज़र्रे-ज़र्रे में फ़ना हो गयी,
मुझ रकीब को कर दिया बाग़ी,
और, एक दिन मुझसे ही खफ़ा हो गयी ।

शायरों की भी है खूब दास्तान,
कोई आशिक़ कहता, कोई कहता मुफ़्लिस इंसान,
बड़ी मौसिकी में उठते है लफ्ज़,
वो, जो इन्हें अभिनव करते है बदनाम,
शायरों की भी है खूब दास्तान |

बारिश की बदलियाँ बदल रही है,
मौसम की रौनकें सवर रही है,
एक अजब सी सादगी है तेरी हंसी में,
और, तेरे हँसते ही मेरी दुनिया सवर रही है । 

एक उलझन है जो सुलझती नहीं,
बस अन्दर से है काटती,
सवाल उठते है ज़ेहन में,
जो रूह को है बाटती,
तलब उठती है कुछ पाने की,
जिस्म लाश सी हो ताकती,
एक उलझन है जो सुलझती नहीं,
बस अन्दर से है काटती ।

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