बदनाम हुए फिरते है मजनू हज़ार,
एक हीर ही नहीं मिलती पिघलने को ।
साहिल से प्यासे गुज़ारा नहीं करते,
कुछ कश्तियों को किनारे नहीं मिलते,
बदलते नहीं है कुछ लोग,
वर्ना, लोगों में "अभिनव" आवारे नहीं मिलते ।
बहुत बेरंग से देखे है आशिक़ ज़माने में,
कोई ज़र्रा नहीं मिलता "अभिनव" आफ़ताब सा ।
कौन रुकता है तेरे या मेरे लिए,
वक़्त चलता है नये सवेरे के लिए,
मैं रुक भी जाता हूँ कहीं राहों में,
वक़्त रुकता नहीं मेरे लिए ।
गौर-ए-तलब हो कर तोहफ़ा-ए-उम्र क्यूँ गुज़ार देते हो,
हमसफ़र और भी मुकम्मिल मिलेंगे उम्र-ए-ज़माने में ।
एक हीर ही नहीं मिलती पिघलने को ।
साहिल से प्यासे गुज़ारा नहीं करते,
कुछ कश्तियों को किनारे नहीं मिलते,
बदलते नहीं है कुछ लोग,
वर्ना, लोगों में "अभिनव" आवारे नहीं मिलते ।
कोई ज़र्रा नहीं मिलता "अभिनव" आफ़ताब सा ।
वक़्त चलता है नये सवेरे के लिए,
मैं रुक भी जाता हूँ कहीं राहों में,
वक़्त रुकता नहीं मेरे लिए ।
गौर-ए-तलब हो कर तोहफ़ा-ए-उम्र क्यूँ गुज़ार देते हो,
हमसफ़र और भी मुकम्मिल मिलेंगे उम्र-ए-ज़माने में ।
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