Tuesday, April 30, 2013

कभी...

कभी आयतों में लिखा तुझे,
कभी ख्वाहिशों में जिया तुझे,
अब, तुझ में सिमट कर रह गए है हम,
हमे जगाने की जिरह न कर ।

ख्वाहिशों का पुलिंदा भी उछाला हवा में,
पर वो न मिला जो उम्मीद-ए-दिल था ।

ज़िरह कीजे भी तो क्या कीजे,
इश्क़-ए-आरज़ू लिए फिरते है वीराने में ।

शिकायतें भी की तुझसे, इनायतें भी की तुझसे,
पर वो न मिटा, जो दिल में गिला था ।

बदलना, फ़ितरत-ए-आम है लोगों में,
तुम न बदलों तो लोगों को गुरेज़ नहीं ।

वक़्त बदलता है, हालात बदलते है,
लोग बदलते है, जज़्बात बदलते है,
कभी, मोसकी से मातम के तराने बदलते है,
और कभी साथ-साथ चलते हुए अफ़साने बदलते है ।

खुश हूँ पर खुश नहीं जाने क्यूँ गम है,
सावन के बादल है, अन्दर, पतझड़ मौसम है ।

एक अजीब सा मातम है छाया सारे सब्ज़-बाग़ में,
बे-ख़याली का मंज़र यूँ भी होगा सोचा न था ।

आईना देख, आज रोया मैं भी,
कोई अपना सा देख रहा न गया ।

Monday, April 29, 2013

बेटी की दुविधा...

करुणा की विरह लगी थी,
एक बेटी की दुविधा बड़ी थी,
माँ से कैसे बोले,
कि सुन लो मेरी बात,
उस दिन उलझे थे हालात, जो वक़्त पर मैं न आई,
गिरते-पड़ते पहुंची मैं, मुरझाई-सकुचाई,
पर देख कर मेरा चेहरा भी, तुम जान तभी न पाई,
तीन दिवस तो बीत गए, एक आवाज़ भी न लगाई,
मैं, बीते दिन से गुम-सुम सी, तुम्हे नज़र भी मैं न आई,
बस छोटे को गले लगा कर, तुम यूँ ही मुस्काई,
एक बेटी की दुविधा बड़ी थी,
करुणा की विरह लगी थी,
माँ से कैसे बोले,
की सुन लो मेरी बात ।

Monday, April 22, 2013

अभिनव...















सब लिखते है नाम "अभिनव",
मैं क्यूँ नहीं लिखता,
सब कहते है मान "अभिनव",
मैं क्यूँ नहीं सुनता,
देख संगी-साथियों की चाल "अभिनव",
मैं क्यूँ नहीं चलता,
लिखता हूँ बस राग अपने,
बस नाम नहीं लिखता "अभिनव",
सब लिखते है नाम "अभिनव"
मैं क्यूँ नहीं लिखता ।

अभिनव - नया, अतुलनीय, चिरकालीन

यादों का काफिला...

यादों का काफिला भी बड़ा सुहाना था,
साथ मेरे गुज़रा एक ज़माना था,
भवर उठते थे टीसों के अंतर्मन में,
और तेरे साये का नींदों में मुस्कुराना था,
यादों का काफिला भी बड़ा सुहाना था ।

वक़्त की मासूमियत थी या मेरी मेहरूमियत,
यह याद नहीं,
अक्स था तेरा अभिनव या वहम,
वो बात नहीं,
घिस-घिस के रंग डाले काले पन्ने,
पर वो साथ नहीं,
भवर उठते थे टीसों के अंतर्मन में,
और तेरे साए का नींदों में वो मुस्कुराना था,
यादों का काफिला भी बड़ा सुहाना था ॥

कौन...















कौन रुकता है किसी ज़माने के लिए,
रूह बदल जाती है आगे निकल जाने के लिए,
वक़्त, बे-वक़्त ही गुज़रा गुज़र जाने के लिए,
कौन रुकता है यहाँ किसी ज़माने के लिए ।

एक अजीब कशमकश जगती है ज़माने के लिए,
लोग, हाक़ दिए जाते है मयखाने के लिए,
अब तो मय भी न मिलती तरानों के लिए,
कौन रुकता है किसी ज़माने के लिए ॥

Wednesday, April 17, 2013

जड़ चेतन मन...















जड़ चेतन मन, जड़ मत हो मगन,
बेल बहुत लम्बी है, तनती रह तू तन,
फूल खिलेगा, सुगन्धित होगा तन,
जड़ चेतन मन, जड़ मत हो मगन ।

पतझड़ की बेला, बस दो पल का मेला,
राह बहुत लम्बी है, चलता चल अकेला,
साथ फूल खिले जो, संग देख कर हो मगन,
बेल बहुत लम्बी है, तनती रह तू तन,
फूल जब खिलेगा, सुगन्धित होगा मन,
जड़ चेतन मन, जड़ मत हो मगन ॥

Tuesday, April 16, 2013

कभी...

कभी, रोये हम भी ज़ार-ज़ार हो कर,
सोचा किये बेकार हो कर,
क्यूँ रोये थे कल रात तार-तार हो कर,
सब कुछ तो वैसे ही था बे-आकार हो कर,
बस, यादें ही तो मिली थी बार-बार खो कर,
कभी, रोये हम भी ज़ार-ज़ार हो कर ।

अश्क़, मिटाते रहे, मुंह, बार-बार धो कर,
सुर्ख़ आँखों भी छुपाते रहे चार-चार हो कर,
जब भी मिले, मुरझाये बार-बार खो कर,
क्यूँ रोये थे कल रात तार-तार हो कर,
सोचा किये यूँ बेकार हो कर,
कभी, रोये हम भी ज़ार-ज़ार हो कर ॥

Thursday, April 11, 2013

क्यूँ रोया मैं कल रात...

क्यूँ रोया मैं कल रात,
याद नहीं,
क्यूँ गुज़री आँखों में रात,
याद नहीं,
भीगे तकिये भी सोख गए अश्क़ों की बरसात,
याद नहीं,
क्यूँ रोया मैं कल रात,
याद नहीं ।

समझ न आई कोई बात,
याद नहीं,
रूठी रही मुझसे रात,
याद नहीं,
समझानी, चाही दिल-ए-हालात,
याद नहीं,
क्यूँ रोया मैं कल रात,
याद नहीं ॥

संवेदना की वेदना...

संवेदना की वेदना भी कटाक्ष करने लगी,
लफ़्ज़ों से बनी आयतें भी हुनर बध करने लगी,
ख़्वाब भी टूटने लगे साहिलों पर आ कर,
मंजिलें, मंज़र-ए-आलम कुछ इस तरह बदलने लगी ।

ख्वाहिशों का फ़लसफ़ा भी लिखा मैंने,
चाहतों का सिलसिला भी लिखा मैंने,
फिर क्यूँ किस्मत पलट करने लगी,
ख़्वाब टूटने लगे साहिलों पर आ कर,
यूँ मंजिलें मंज़र-ए-आलम बदलने लगी ।।

Tuesday, April 9, 2013

डरने लगी...

बेचैनी, तपिश बन जलने लगी,
घुटन, अन्दर ही अन्दर बढ़ने लगी,
लफ्ज़, बिखरने लगे कागज़ पर इधर-उधर,
और रूह तेरे जाने के ख़्याल से भी डरने लगी ।

क्यूँ चाहने लगा हूँ तुझको,
यह मालूम नहीं,
अपना सा पाने लगा हूँ तुझको,
क्यूँ, मालूम नहीं,
हाँ, हक है मेरा तुझ पर,
फिर भी डरने लगा,
शायद तुझे खो देने के ख़्याल से भी डरने लगा,
घुटन, अन्दर ही अन्दर बढ़ने लगी,
बेचैनी, तपिश बन जलने लगी,
लफ्ज़, बिखरने लगे कागज़ पर इधर-उधर,
और रूह तेरे जाने के ख़्याल से भी डरने लगी ।

Saturday, April 6, 2013

महफ़िल-ए-आलम...

दौर-ए-शरीक़ भी हुए हाल-ए-दिल मेरे,
पर, आँसू बहाने की वजह न मिली ।

मौसकी में ही सही, जिंदा है महफिलों में,
वर्ना साकी (इश्क़) ने तो कबका मार दिया था ।

बहुत बेचैनी हुई जब तुझको दूर जाते देखा,
दिल में आह और कानों में तेरे लौट आने के वादे गूंजते रहे ।

एहसास-ए-कूबत भी देखी करके, कुछ गमज़र्द भी रहे,
मंसूब-ए-मोहोब्बत का फ़कत कोई वफ़ा न मिला ।

हालात-ए-दिल परवाने का, ख़ाक-ए-ख़त्म से हुआ,
इश्क़ में मारे फिरता था, एक बे-जान फूल पर ।

मोहोब्बत क्यूँ हुई मुरझाये फूल से,
राज़-ए-मोहोब्बत अब तक न खुला,
ता-उम्र जिये उर्स-ए-मोहोब्बत में,
पर जो चाहा वो न मिला ।

Thursday, April 4, 2013

अहम्-ओ-ख़ास ज़िन्दगी...













अहम्-ओ-ख़ास ज़िन्दगी तब जाना,
जब रूह फ़ना हो गयी,
ख़ाक-ए-अक्स तब माना,
जब "मैं" से जुदा हो गयी,
राख़-ए-ज़र्रा तब हुआ,
जब आह-ए-उल्फ़त हो गयी,
अहम्-ओ-ख़ास ज़िन्दगी तब जाना,
जब रूह फ़ना हो गयी ।

Wednesday, April 3, 2013

और...

और, वो सांसें भी टूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे,
वो रात भी रूठ गयी, जो रुकी हुई थी तुझसे,
गीले तकिये भी सूख गए, जो भीगे पड़े थे तुझसे,
वो आँखें भी सूख गयी, जो नम कभी थी तुझसे,
और, वो बात भी छूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे,
वो सांस भी टूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे ।

गहन-घने थे साये, जो धीरे घर कर आये,
यादों में सकुचाये, मन-हलचल कर जाये,
आँखों के कोने-कोनों में, बाँध बंधे चिल्लाए,
मद्धम काली रातों में, तकिये को भिगाए,
अब, यादें भी वो रूठ गयी, जो बंधी कहीं थी तुझसे,
वो बातें भी छूट गयी, जो जुड़ी कहीं थी तुझसे,
वो रातें भी अब रूठ गयी, जो रुकी हुई थी तुझसे,
और सांसें भी टूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे ।।

Tuesday, April 2, 2013

तराने...

दिल में कई तराने उठते है,
गुज़रे कई ज़माने उठते है,
ख्वाहिशों की कश्तियों पर सवार,
यादों के भवर हज़ार,
मिलते-बिछड़ते कुछ गाने उठते है,
दिल में कई तराने उठते है ।

ख्वाहिशों की कश्तियाँ,
यादों के भवर,
बनती-बिगडती बातें,
आशाओं के सफ़र उठते है,
गुज़रे कई ज़माने उठते है,
दिल में कई तराने उठते है ।।

एक नाम जाना पहचाना सा,
कुछ अपना सा कुछ बेगाना सा,
आँखों की मीठी बोलियाँ,
मानो, कानों में रस घोल दिया,
दूर, बहुत दूर, कुछ चेहरे पहचाने लगते है,
दिल में गुज़रे कई तराने उठते है,
ख्वाहिशों की कश्तियों पर सवार,
यादों के भवर हज़ार,
मिलते-बिछड़ते कुछ गाने उठते है,
दिल में कई तराने उठते है ।।।