लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास,
कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस,
मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Thursday, April 4, 2013
अहम्-ओ-ख़ास ज़िन्दगी...
अहम्-ओ-ख़ास ज़िन्दगी तब जाना,
जब रूह फ़ना हो गयी, ख़ाक-ए-अक्स तब माना, जब "मैं" से जुदा हो गयी, राख़-ए-ज़र्रा तब हुआ, जब आह-ए-उल्फ़त हो गयी, अहम्-ओ-ख़ास ज़िन्दगी तब जाना, जब रूह फ़ना हो गयी ।
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