Tuesday, April 16, 2013

कभी...

कभी, रोये हम भी ज़ार-ज़ार हो कर,
सोचा किये बेकार हो कर,
क्यूँ रोये थे कल रात तार-तार हो कर,
सब कुछ तो वैसे ही था बे-आकार हो कर,
बस, यादें ही तो मिली थी बार-बार खो कर,
कभी, रोये हम भी ज़ार-ज़ार हो कर ।

अश्क़, मिटाते रहे, मुंह, बार-बार धो कर,
सुर्ख़ आँखों भी छुपाते रहे चार-चार हो कर,
जब भी मिले, मुरझाये बार-बार खो कर,
क्यूँ रोये थे कल रात तार-तार हो कर,
सोचा किये यूँ बेकार हो कर,
कभी, रोये हम भी ज़ार-ज़ार हो कर ॥

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