Thursday, April 11, 2013

संवेदना की वेदना...

संवेदना की वेदना भी कटाक्ष करने लगी,
लफ़्ज़ों से बनी आयतें भी हुनर बध करने लगी,
ख़्वाब भी टूटने लगे साहिलों पर आ कर,
मंजिलें, मंज़र-ए-आलम कुछ इस तरह बदलने लगी ।

ख्वाहिशों का फ़लसफ़ा भी लिखा मैंने,
चाहतों का सिलसिला भी लिखा मैंने,
फिर क्यूँ किस्मत पलट करने लगी,
ख़्वाब टूटने लगे साहिलों पर आ कर,
यूँ मंजिलें मंज़र-ए-आलम बदलने लगी ।।

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