Monday, April 22, 2013

यादों का काफिला...

यादों का काफिला भी बड़ा सुहाना था,
साथ मेरे गुज़रा एक ज़माना था,
भवर उठते थे टीसों के अंतर्मन में,
और तेरे साये का नींदों में मुस्कुराना था,
यादों का काफिला भी बड़ा सुहाना था ।

वक़्त की मासूमियत थी या मेरी मेहरूमियत,
यह याद नहीं,
अक्स था तेरा अभिनव या वहम,
वो बात नहीं,
घिस-घिस के रंग डाले काले पन्ने,
पर वो साथ नहीं,
भवर उठते थे टीसों के अंतर्मन में,
और तेरे साए का नींदों में वो मुस्कुराना था,
यादों का काफिला भी बड़ा सुहाना था ॥

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