बेचैनी, तपिश बन जलने लगी,
घुटन, अन्दर ही अन्दर बढ़ने लगी,
लफ्ज़, बिखरने लगे कागज़ पर इधर-उधर,
और रूह तेरे जाने के ख़्याल से भी डरने लगी ।
क्यूँ चाहने लगा हूँ तुझको,
यह मालूम नहीं,
अपना सा पाने लगा हूँ तुझको,
क्यूँ, मालूम नहीं,
हाँ, हक है मेरा तुझ पर,
फिर भी डरने लगा,
शायद तुझे खो देने के ख़्याल से भी डरने लगा,
घुटन, अन्दर ही अन्दर बढ़ने लगी,
बेचैनी, तपिश बन जलने लगी,
लफ्ज़, बिखरने लगे कागज़ पर इधर-उधर,
और रूह तेरे जाने के ख़्याल से भी डरने लगी ।
घुटन, अन्दर ही अन्दर बढ़ने लगी,
लफ्ज़, बिखरने लगे कागज़ पर इधर-उधर,
और रूह तेरे जाने के ख़्याल से भी डरने लगी ।
क्यूँ चाहने लगा हूँ तुझको,
यह मालूम नहीं,
अपना सा पाने लगा हूँ तुझको,
क्यूँ, मालूम नहीं,
हाँ, हक है मेरा तुझ पर,
फिर भी डरने लगा,
शायद तुझे खो देने के ख़्याल से भी डरने लगा,
घुटन, अन्दर ही अन्दर बढ़ने लगी,
बेचैनी, तपिश बन जलने लगी,
लफ्ज़, बिखरने लगे कागज़ पर इधर-उधर,
और रूह तेरे जाने के ख़्याल से भी डरने लगी ।
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