Monday, April 22, 2013

कौन...















कौन रुकता है किसी ज़माने के लिए,
रूह बदल जाती है आगे निकल जाने के लिए,
वक़्त, बे-वक़्त ही गुज़रा गुज़र जाने के लिए,
कौन रुकता है यहाँ किसी ज़माने के लिए ।

एक अजीब कशमकश जगती है ज़माने के लिए,
लोग, हाक़ दिए जाते है मयखाने के लिए,
अब तो मय भी न मिलती तरानों के लिए,
कौन रुकता है किसी ज़माने के लिए ॥

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