Wednesday, April 3, 2013

और...

और, वो सांसें भी टूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे,
वो रात भी रूठ गयी, जो रुकी हुई थी तुझसे,
गीले तकिये भी सूख गए, जो भीगे पड़े थे तुझसे,
वो आँखें भी सूख गयी, जो नम कभी थी तुझसे,
और, वो बात भी छूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे,
वो सांस भी टूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे ।

गहन-घने थे साये, जो धीरे घर कर आये,
यादों में सकुचाये, मन-हलचल कर जाये,
आँखों के कोने-कोनों में, बाँध बंधे चिल्लाए,
मद्धम काली रातों में, तकिये को भिगाए,
अब, यादें भी वो रूठ गयी, जो बंधी कहीं थी तुझसे,
वो बातें भी छूट गयी, जो जुड़ी कहीं थी तुझसे,
वो रातें भी अब रूठ गयी, जो रुकी हुई थी तुझसे,
और सांसें भी टूट गयी, जो जुड़ी हुई थी तुझसे ।।

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