शाख से टूटा हर पत्ता, बस एक कहानी कहता है,
कल गुज़रे बीते लम्हे की, धूमिल सी निशानी कहता है,
वो गिरते सूखे पत्तों में, जर होती क्यूँ मेरी काया,
वो पड़ते पीले पत्तों में, खोती क्यूँ मेरी छाया,
उन बिखरे सूखे पत्तों में, वो बात पुरानी कहता है,
शाख से टूटा हर पत्ता, बस एक कहानी कहता है,
कल बीते गुज़रे लम्हे की, धूमिल सी निशानी कहता है...
कभी कुचला-मुचला क़दमों ने, तो कभी तोड़ा-मोड़ा राहों ने,
जो शान कभी थे तरुवर के, उन्हें कुचला-मुचला राहों ने,
कल जो सावन झूम के आया, बरखा ऋतू भी संग में लाया,
गरजे बदरा, भीगा तरुवर, भीगी कैसी मेरी काया,
गुज़रा लम्हा वो बीता कल, गुज़रा सावन आया पत-झड़,
जो शान कभी थे तरुवर के, उन्हें कुचला-मुचला राहों ने,
जो जान कभी थे तरुवर के, उन्हें तोड़ा-मोड़ा राहों ने,
वक़्त बदलता है जो रहता, राह बदलती जाती है,
समय का पहिया है जो चलता, बात बदलती जाती है,
मैं, शाख से टूटा हूँ पत्ता, बस एक कहानी कहता हूँ,
कल गुज़रे बीते लम्हे की, धूमिल से निशानी कहता हूँ,
गर! पड़े रहे यूँ राहों में, धूमिल होगी अपनी काया,
निकलों खुद के क़दमों से, बहने दो खुद की छाया,
छंद रचो, कह दो मन की, मरने न दो खुद की काया,
कल सावन जो वो झूम के आएगा, हरी होगी फिर से छाया,
शाख से टूटा हर पत्ता, बस एक कहानी कहता है,
कल गुज़रे बीते लम्हे की, धूमिल सी कहानी कहता है...