हवा चली, फिज़ा खिली,
आई बरखा झूम के,
माघ बदरा, मेघ बरखा,
लाया सावन झूम के,
पत्तियों पर चर-चर नयी, रौशनी सी जगमगाई,
धुल गए सब पाप सारे, नयी फिज़ा सुगंध लायी,
यूँ हवा चली, फिज़ा खिली,
आई बरखा झूम के,
संग मेरे बाग़ खिले,
आया सावन झूम के...
झड़ गए सब धूल-पत्ति, बूँद जो तन को छुई,
एक नया यौवन जागा, बूँद जो मन को छुई,
कोई बालक छुप गया, ओट मेरी यूँ लिए,
कोई चंचल खेल लिया, संग मेरे हो लिए,
मेरी भुजाओ से यूँ बूँदें बोली,
झूमो तरुवर, नभ ठिठोली,
माघ बदरा मेघ यह, फिर न वापस आयेंगे,
है हरा यौवन जो तेरा, फीके यह पड़ जायेंगे,
वक़्त रहते साथ यह, संग मेरे कर ले ठिठोली,
माघ बीता, गुज़रे बदरा, फिर न आये सावन झूम के,
जो हवा चली, फिज़ा खिली,
आज, आई बरखा झूम के,
संग मेरे मगन होले,
फिर न आये सावन झूम के...

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