Thursday, April 26, 2012

बरखा-ऋतु आई...
















दूर शितिज पर खुशियों का बादल छाया,
फिज़ाओ की रंगत बदली, अंधियारे की छटा-छाया,
दूर नभ में, बूंदों ने ली अंगड़ाई,
परबत पर बदरी छायी, बरखा-ऋतु आई...
देखते ही देखते, कई सुर और ताल छिड़ गए,
बूँदें बरसने लगी मुझ पर, लफ्ज़ मचल गए,
देखते ही देखते यौवन ने ली अंगड़ाई,
परबत पर बदरी छायी, बरखा-ऋतु आई...

हरी छोटी पत्तियों का झूम उठा संसार,
मैं, बालक मन करने लगा पुकार,
मिटटी की खुशबू उठी, बचपन ने ली अंगड़ाई,
दूर शितिज पर खुशियों की बदरी छायी,
फिज़ाओ की रंगत बदली, बरखा-ऋतु आई...

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