Thursday, April 26, 2012

कुछ-कुछ लिख कर, सब कुछ कह दो...






















कुछ-कुछ लिख दो,
कुछ-कुछ कह दो,
कुछ-कुछ लिख कर,
सब कुछ कह दो,
जो दर्द है कुचले-मसले से,
कुछ मैले और कुचैले से,
उस दर्द को तुम बस बहने दो,
कुछ दिल में न तुम रहने दो,
कुछ-कुछ लिख दो,
कुछ-कुछ कह दो,
कुछ-कुछ लिख कर, सब कुछ कह दो...

जो बात है दिल में दबी हुई,
जो जुबां ने अब तक कही नहीं,
उस बात को अब तुम लिख दो,
कुछ-कुछ लिख कर, सब कुछ कह दो...
दर्द को जो यह साया है,
हम सबने ही पाया है,
हर दर्द है सबका हिस्सा,
एक ज़ख्म-इ-दिल है सबका किस्सा,
दिल की बातों को अब लिख दो,
कुछ-कुछ लिख कर, सब कुछ कह दो...

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