Thursday, April 26, 2012

रात गुजरी...
















एक रात गुजरी, यादों का स्याह आसमान गुज़र गया,
आँखों से निकल, तकिये पर सारा जहान बिखर गया,
वो कल सुबह का सपना था,
चाह कर भी न वो अपना था,
यादों का तनहा लम्हा था,
बातों का उलझा लम्हा था,
एक रात गुजरी, यादों का स्याह आसमान गुज़र गया,
आँखों से निकल, तकिये पर सारा जहान बिखर गया...

वो अपना था या सपना था,
चाह कर भी वो न अपना था,
था साथ चलता राहों में,
रहता हर पल चाहों में,
फिर क्यूँ न वो अपना था,
आँखों का बस वो सपना था...

एक बात दबी थी सीने में,
एक आस छुपी थी जीने में,
अब आस का न वो सपना है,
चाह कर भी वो न अपना है,
जो रात गुजरी, यादों का स्याह आसमान गुज़र गया,
आँखों से निकल, तकिये पर सारा जहान बिखर गया...

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