मंजिल सबकी एक है, फिर राहें क्यूँ है जुदा-जुदा,
राह पूछते है मुझसे, हो कर सब क्यूँ खफ़ा-खफ़ा,
मंजिलों की दास्ताँ सब कहते है, यौवन की माला सब जपते है,
फिर आहें क्यूँ है जुदा-जुदा,
मंजिल सबकी एक है, फिर राहें क्यूँ है जुदा-जुदा...
झांकते, है ताकते एक-दूजे की ओर,
फिर भी मिलते नहीं, चाहे दिल का लगा लो ज़ोर,
राह पूछते है मुझसे, हो कर सब क्यूँ खफ़ा-खफ़ा,
मंजिल सबकी एक है, फिर राहें क्यूँ है जुदा-जुदा...
एक रौशनी की आस में जलते,
गिरते, कभी संभलते,
राह फिर क्यूँ न पाते है,
लड़खड़ा कर तो न-समझ भी संभल जाते है,
मंजिल की ताक़ में, करते क़त्ल-इ-आम यहाँ-वहां,
राह पूछते है मुझसे, हो कर सब क्यूँ खफ़ा-खफ़ा,
मंजिल सबकी एक है, फिर राहें क्यूँ है जुदा-जुदा...

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