Tuesday, April 10, 2012

गरजे कुछ काले बदरा...
















गरजे कुछ काले बदरा,
बरसे कुछ काले बदरा,
तन-मन मेरा भिगोने को,
गरजे कुछ काले बदरा,
एक दर्द छुपा था दिल के अन्दर,
झम-झम करके बरस गया,
एक आह दबी थी दिल के अन्दर,
तर-तर करके बिखर गया,
बरसे कुछ काले बदरा,
तरसे कुछ काले बदरा,
मन मेरा क्यूँ यूँ बरस गया,
तन मेरा क्यूँ यूँ तरस गया,
एक दर्द छुपा था दिल के अन्दर,
झम-झम करके बरस गया,
वो दर्द पुरानी यादों का,
कुछ कड़वी मीठी बातों का,
क्यूँ झट से यूँ ये बिखर गया,
एक आह दबी थी दिल के अन्दर,
तर-तर करके बिखर गया,
गरजे कुछ काले बदरा,
बरसे कुछ काले बदरा...

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