Wednesday, April 18, 2012

यादों का काफिला...

















यादों का काफिला चल पड़ा,
बातों का काफिला चल पड़ा,
पहर दर पहर गुज़रते रहे,
यूँ ख़्वाबों का कारवां चल पड़ा...

वो गुज़रा लम्हा रेत सा,
जो बजता था पाजेब सा,
धुंधले पड़ते चेहरों में,
यादें ग़ुम सी होती जाती,
चेहरे ओझिल हो जाते,
बातें फिर भी सताती,
जाने क्यूँ, अधूरी यादों का काफिला चल पड़ा,
अनकही बातों का कारवां चल पड़ा...

कुछ बचपन के चेहरे तैर गए,
और आँख गमगीन हो गयी,
होंठ हिलते रहे मुस्कराहट में,
आँखे नमकीन हो गयी,
जो गुज़रा लम्हा रेत सा,
जो बजता था पाजेब सा,
उन उलझी, सिमटी यादों का काफिला चल पड़ा,
अनचाही बातों का कारवां चल पड़ा...

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