लिखत-लिखत कलम घिसे, गहरी होत दवात, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास, कह अभिनव, नव-नूतन बनके, लिख दो दिल की आस, मन तरसे नए शब्दों को, बुझे न लिखन की प्यास...
Friday, December 28, 2012
Wednesday, December 26, 2012
धुंध की सुबह...
धुंध की सुबह निराली, छुप रही थी लालिमा,
कोहरे की चादर तनी थी, सूर्य कोटि नमो-नमः,
रुक गया आलम था सारा, सब्ज़ मीलों बाग़ में,
धुंधले भी पड़ते थे चेहरे, सुबह भीगे राग में,
मैं अकेला चल रहा था, धुन में अपनी जाग के,
साथ बिखरे लफ्ज़ थे, सब्ज़ मीलों बाग़ में,
ये जो धुंध की सुबह निराली, छुप रही थी लालिमा,
कोहरे की चादर तानी थी, सूर्य कोटि नमो-नमः ।
कोई गुज़र गया पास से, यादों में झाँक के,
कह गया मुझसे, बढ़ो, अपनी याद से,
क्यूँ, थमे हुए हो, अब तक अपने आप में,
मैं अकेला चल रहा था, धुन में अपनी जाग के,
रुक गया आलम था सारा, सब्ज़ मीलों बाग़ में,
धुंधले भी पड़ते थे चेहरे, सुबह भीगे राग में,
जो धुंध की सुबह निराली, छुप रही थी लालिमा,
कोहरे की चादर तानी थी, सूर्य कोटि नमो-नमः ।।
Sunday, December 23, 2012
कहानी ये झूठी...
कहानी ये झूठी हमें सुनाई गयी है,
भड़की हुई चिंगारी बुझाई गयी है,
ये जो आग है जल रही सीनों में,
ये जो दर्द है इतना जीने में,
वो शमा यूँ बुझाई गयी है,
कहानी ये झूठी हमें सुनाई गयी है ।
डरता हूँ, कहीं यह आम न हो जाए,
हर औरत, कहीं बलात्कार के नाम न हो जाए,
कहीं मेरा बेटा का "बलात्कारी" नाम न हो जाए,
कल मेरी बहन-बेटी बदनाम न हो जाए,
डरता हूँ, कहीं ये आम न हो जाए,
ये जो आग है जल रही सीनों में,
जो दर्द है इतना जीने में,
वो शमा यूँ बुझाई गयी है,
कहानी ये झूठी हमें सुनाई गयी है ।।
Wednesday, December 19, 2012
धिक्कार है...
धिक्कार है, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है,
जहाँ लूटने को, नोचने को,
भूखे भेड़िये है घुमते,
जहाँ अबला का तन पाकर,
जालिमों से है झूमते,
उस देश में जिंदा हूँ,
नज़रें झुकी, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है ।
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है,
जहाँ लूटने को, नोचने को,
भूखे भेड़िये है घुमते,
जहाँ अबला का तन पाकर,
जालिमों से है झूमते,
उस देश में जिंदा हूँ,
नज़रें झुकी, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है ।
आदिम और शैतान में बस फर्क यही बाकी है,
एक तन का तो दूजा मन का तासी है,
बस नोचने-कटोचने और जिस्म की प्यास जागी है,
इस देश में "इंसानों" की कमी जागी है,
क्यूंकि, यहाँ लूटने को, नोचने को,
भूखे भेड़िये है घुमते,
जो अबला का तन पाकर,
जालिमों से है झूमते,
उस देश में जिंदा हूँ,
नज़रें झुकी, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है ।।
Tuesday, December 18, 2012
भूख...
क्या हुआ है लोगों को,
क्यूँ इतने बेताब है,
क्या बस हवस जली है तन में,
क्यूँ भूख बड़ी बदजात है,
न माँ-बहन, न बेटी,
क्यूँ जिस्म की बस प्यास है,
क्या हुआ है लोगों को,
क्यूँ इतने बेताब है ।
तंत्र निकम्मा, मंत्र निकम्मा,
देश का प्रजातंत्र निकम्मा,
लोग बड़े बदजात है,
क्या हुआ है लोगों को,
क्यूँ इतने बेताब है,
न माँ-बहन, न बेटी,
बस जिस्म की प्यास है,
क्या हुआ है लोगों को,
क्यूँ इतने बेताब है ।।
छैल छबीला...
छैल छबीला, मस्त सजीला,
मिला मुझे एक रोज़,
कहा! मुझे भी खोज,
हूँ कहीं तुझमे ही,
आईना देख ज़रा एक रोज़,
स्याह रंगा वो रंग रंगीला,
छैल छबीला, मस्त सजीला ।
खोजा उसको बहुत कहीं,
मिली नहीं फिर-दोस,
हूँ कहीं तुझमे ही,
आईना देख ज़रा एक रोज़,
स्याह रंगा वो रंग रंगीला,
छैल छबीला, मस्त सजीला,
मिला मुझे एक रोज़ ।।
मिला मुझे एक रोज़,
कहा! मुझे भी खोज,
हूँ कहीं तुझमे ही,
आईना देख ज़रा एक रोज़,
स्याह रंगा वो रंग रंगीला,
छैल छबीला, मस्त सजीला ।
खोजा उसको बहुत कहीं,
मिली नहीं फिर-दोस,
हूँ कहीं तुझमे ही,
आईना देख ज़रा एक रोज़,
स्याह रंगा वो रंग रंगीला,
छैल छबीला, मस्त सजीला,
मिला मुझे एक रोज़ ।।
Saturday, December 15, 2012
बिना वजह...
गलत है शिकवा, क्यूँ दिल से लगाए बैठे हो,
नादानी की गलती को, दिल में जलाए बैठे हो,
रूठो न हमसे, जीना मुनासिब नहीं तुम बिन,
क्यूँ इतनी बड़ी सजा में, हमे जलाए बैठे हो ।
बिना वजह का शिकवा है, बेकार की शिकायत है,
क्यूँ दर्द दिए जा रहे हो खुद को, क्यूँ ये कवायद है,
मत दो दर्द खुद को, बहुत कोफ़्त होती है,
मुस्कुराओ हर पल, क्यूंकि ज़िन्दगी की यही इनायत है ।
सवाल और लाखों ख़्याल क्यूँ है,
उलझी सी है ज़िन्दगी या उलझे ख़्याल क्यूँ है,हो तुम मुझ में ही कहीं,
तो फिर तुम्हे पाने का ख़्याल क्यूँ है ।
Friday, December 14, 2012
बैठे-बैठे...
दोस्त कह कर मुझे अपना बना लिया,
थाम कर हाथ मेरा, दिल में बसा लिया,
मैं, बेसब्र था थोड़े प्यार के लिए,
गले लगा कर मुझे अपना बना लिया ।
मैं लिखता नहीं, लफ्ज़ मुझे लिख देते है क्यूँ,
शब्द मैं नहीं कहता, शब्द मुझे कह देते है क्यूँ,
मैं तो हाल-इ-दिल सुनता हूँ, बुझती आवाजों से,
कुछ मैं नहीं कहता, कलम मेरी लिख देती है क्यूँ ।
कुछ बा-नोश, तो कुछ बे-होश बैठे है,
इस इश्क में जाने कितने खामोश बैठे है,कुछ दर्द में डूबे, तो कुछ मदहोश बैठे है,
इस इश्क में जाने कितने बे-होश बैठे है ।
Thursday, December 13, 2012
"अभिनव"
क्या खूब लफ्ज़-ओ-अदाएगी है,
क्या खूब ख्वाहिशों की नुमाएगी है,
लफ़्ज़ों को पिरो, सारी बात कह दी,
दिल-इ-अरमान की सौगात कह दी,
मैंने तो बस कोशिश की चंद बातें कहने की,
तुमने तो बूंदों को पकड़ बरसात कह दी ।
गम न कर, यह तो गुज़र जाएगा,
बस साथ गुज़रा लम्हा याद आएगा,
मैं हूँ नहीं जिंदा बेशक,
पर जाने के बाद ये "अभिनव" बा-खूब याद आएगा ।
आँखों में छुपा कर, दिल में बसा लो,
बस गले लगा कर, अपना बना लो,
प्यार की चाहत, स्नेह का भूखा हूँ,
प्यार भरी रोटी दे कर, मुझे अपना बना लो ।
Wednesday, December 12, 2012
कुछ, यूँ ही...
मोहोब्बत की जो मैंने, कोई खता तो नहीं,
एक आस सजाये बैठा हूँ, कोई सजा तो नहीं,
हाँ! इंतज़ार में जिंदा हूँ ज़माने की तरह,
राह-इ-नज़रें टिकाये बैठा हूँ, कोई खता तो नहीं ।
लफ़्ज़ों से लफ्ज़ मिला ले अगर,
दिल को दिल से मिला ले अगर,
हाँ में हाँ मिला ले अगर,
तो ज़िन्दगी रोशन सी हो जाए,
तुमको जो दिल में बसा ले अगर,
नज़रों में तुमको समां ले अगर,
बाहों में तुमको छुपा ले अगर,
तो खुशियों का दामन भी भर जाए ।
जाने किस-किस मर्ज़ से,
मैंने रिश्ता जोड़ लिया,
कोई अपना दिखा भीड़ में,
कोई सपना सजा झील में,
मैंने दिल से दिल जोड़ लिया,
जो मुस्कुरा कर हाथ थामा,
मैंने अपना सांस थामा,
हाथों को जोड़ लिया,
तुमसे रिश्ता जोड़ लिया,
इश्क की तर्ज़ पे,
जाने किस-किस मर्ज़ से,
मैंने रिश्ता जोड़ लिया ।
मैंने रिश्ता जोड़ लिया,
कोई अपना दिखा भीड़ में,
कोई सपना सजा झील में,
मैंने दिल से दिल जोड़ लिया,
जो मुस्कुरा कर हाथ थामा,
मैंने अपना सांस थामा,
हाथों को जोड़ लिया,
तुमसे रिश्ता जोड़ लिया,
इश्क की तर्ज़ पे,
जाने किस-किस मर्ज़ से,
मैंने रिश्ता जोड़ लिया ।
Tuesday, December 11, 2012
छोटे बड़े का खेल है सारा...
छोटे बड़े का खेल है सारा,
कोई बड़ा सगा, तो कोई छोटा प्यारा,
लफ़्ज़ों का यह खेल नयारा,
छोटे बड़े का खेल है सारा ।
कह कर अपना जो हाथ बढ़ाया,
संग मैं भी खिचता चला आया,
कह कर अपना जो गले लगाया,
दिल से जुड़ा मैंने खुद को पाया,
कोई बड़ा सगा, तो कोई छोटा प्यारा,
लफ़्ज़ों का यह खेल नयारा,
छोटे बड़े का खेल है सारा ।।
कोई बड़ा सगा, तो कोई छोटा प्यारा,
लफ़्ज़ों का यह खेल नयारा,
छोटे बड़े का खेल है सारा ।
कह कर अपना जो हाथ बढ़ाया,
संग मैं भी खिचता चला आया,
कह कर अपना जो गले लगाया,
दिल से जुड़ा मैंने खुद को पाया,
कोई बड़ा सगा, तो कोई छोटा प्यारा,
लफ़्ज़ों का यह खेल नयारा,
छोटे बड़े का खेल है सारा ।।
चलते-चलते...
राह में चलते-चलते कुछ लफ्ज़ उठा लाया हूँ,
कुछ मेरे हिस्से के तो कुछ तेरे हिस्से से कहने आया हूँ,
शायरी का शौक न था यारों, यह बस दिल-इ-अदायगी थी,
बस दिल की कहने को लफ्ज़ जोड़ लाया हूँ,
राह में चलते-चलते कुछ लफ्ज़ उठा लाया हूँ ।
ये रात...
ये रात, सपनों से भरी, ओढ़ आई चांदनी,
सपनों की चादर सजाये, बाहें फलाये खाड़ी,ताल पर कुछ गीत सजते, राह उजियारी नयी,
दूर बजती धुन नयी लिए परछाई हो खाड़ी,
ये रात, सपनों से भरी, ओढ़ आई चांदनी,
सपनों की चादर सजाये, बाहें फलाये हो खाड़ी ।
Monday, December 10, 2012
शायरों की भी क्या खूब कहानी है...
शायरों की भी क्या खूब कहानी है,
कुछ गम-जर्द है तो कुछ टूटे दिल की निशानी है,
शायरों की भी क्या खूब कहानी है ।
नज़रों में देख, सब कुछ बयान करते है,
कुछ कहते नहीं बस लफ़्ज़ों में बहते है,
कभी अपने से तो कभी दुनिया बेगानी है,
हाथों में कलम, आँखों में पानी है,
शायरों की भी क्या खूब कहानी है ।।
Thursday, December 6, 2012
जो कच्ची पड़ जाए...
बात बड़ी न बोलिए, जो कच्ची पड़ जाए,
बात वही बोलिए, जो दिल में गड़ जाए,
झूठ-साच की बात यह, देर समझ में आये,
बात बड़ी न बोलिए, जो कच्ची पड़ जाए ।
बात कटु "मैं" बोलिए, दिल में भी चुभ जाए,
पर ध्यान-धपट के सोचिये, दिल क्यूँ है दुखाये,
बात बुरी वही है, जो अश्कों में तर जाए,
बूँद-बूँद बरस कर, घाव बड़ा कर जाए,
तो, बात बड़ी न बोलिए, जो कच्ची पड़ जाए,
बात वही बोलिए, जो दिल में गड़ जाए ।।
दैउ शब्दन की आशा...
तोलत बोलत जानिये जो सज्जन होए,
कटु वचन जो बोलिए, मन विचलित होए,देख पराई दुनिया, मत चौकों सकुचाये,
टोल मोल के बोलिए, जो इंसान होए ।
प्रीत परायी कैसी यह, दैउ शब्दन की आशा,
चंचलता विचलित कर दे, कटु वचनों की भाषा,
मीठन बोल जो बोलिए, मिले दिलों की आस,
गन्दी जिवाह जो करिए, फसे दिलों में फांस,
तोलत बोलत जानिये जो सज्जन होए,
टोल मोल के बोलिए जो इंसान होए ।।
Subscribe to:
Comments (Atom)







