Wednesday, December 26, 2012

धुंध की सुबह...









धुंध की सुबह निराली, छुप रही थी लालिमा,
कोहरे की चादर तनी थी, सूर्य कोटि नमो-नमः,
रुक गया आलम था सारा, सब्ज़ मीलों बाग़ में,
धुंधले भी पड़ते थे चेहरे, सुबह भीगे राग में,
मैं अकेला चल रहा था, धुन में अपनी जाग के,
साथ बिखरे लफ्ज़ थे, सब्ज़ मीलों बाग़ में,
ये जो धुंध की सुबह निराली, छुप रही थी लालिमा,
कोहरे की चादर तानी थी, सूर्य कोटि नमो-नमः ।

कोई गुज़र गया पास से, यादों में झाँक के,
कह गया मुझसे, बढ़ो, अपनी याद से,
क्यूँ, थमे हुए हो, अब तक अपने आप में,
मैं अकेला चल रहा था, धुन में अपनी जाग के,
रुक गया आलम था सारा, सब्ज़ मीलों बाग़ में,
धुंधले भी पड़ते थे चेहरे, सुबह भीगे राग में,
जो धुंध की सुबह निराली, छुप रही थी लालिमा,
कोहरे की चादर तानी थी, सूर्य कोटि नमो-नमः ।।

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