धिक्कार है, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है,
जहाँ लूटने को, नोचने को,
भूखे भेड़िये है घुमते,
जहाँ अबला का तन पाकर,
जालिमों से है झूमते,
उस देश में जिंदा हूँ,
नज़रें झुकी, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है ।
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है,
जहाँ लूटने को, नोचने को,
भूखे भेड़िये है घुमते,
जहाँ अबला का तन पाकर,
जालिमों से है झूमते,
उस देश में जिंदा हूँ,
नज़रें झुकी, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है ।
आदिम और शैतान में बस फर्क यही बाकी है,
एक तन का तो दूजा मन का तासी है,
बस नोचने-कटोचने और जिस्म की प्यास जागी है,
इस देश में "इंसानों" की कमी जागी है,
क्यूंकि, यहाँ लूटने को, नोचने को,
भूखे भेड़िये है घुमते,
जो अबला का तन पाकर,
जालिमों से है झूमते,
उस देश में जिंदा हूँ,
नज़रें झुकी, शर्मसार है,
इस देश की दुर्दशा पर धिक्कार है ।।

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