Friday, December 14, 2012

बैठे-बैठे...

दोस्त कह कर मुझे अपना बना लिया,
थाम कर हाथ मेरा, दिल में बसा लिया,
मैं, बेसब्र था थोड़े प्यार के लिए,
गले लगा कर मुझे अपना बना लिया ।

मैं लिखता नहीं, लफ्ज़ मुझे लिख देते है क्यूँ,
शब्द मैं नहीं कहता, शब्द मुझे कह देते है क्यूँ,
मैं तो हाल-इ-दिल सुनता हूँ, बुझती आवाजों से,
कुछ मैं नहीं कहता, कलम मेरी लिख देती है क्यूँ ।

कुछ बा-नोश, तो कुछ बे-होश बैठे है,
इस इश्क में जाने कितने खामोश बैठे है,
कुछ दर्द में डूबे, तो कुछ मदहोश बैठे है,
इस इश्क में जाने कितने बे-होश बैठे है ।

No comments:

Post a Comment