रात भर…
रात भर जलती रही ये निगाहें मेरी,
आज जाना इश्क़ की ख़लिश भी क्या चीज़ है,
सारा शहर सोता रहा सिसकियों पर मेरी,
आज जाना इश्क़ की तपिश भी क्या चीज़ है ।
मरता रहा तिल-तिल कर उसके लिए,
जिसको रश्क़ भी न रहा मेरे होने का,
गीला तकिया रहा चीखता रात भर,
आज जाना इश्क़ की ख़लिश भी क्या चीज़ है ।।
आदत...
कैसे रोकूँ तुझको खुद से बिछड़ने से,
एक आदत सी बन गयी है तू मेरी,
कैसे रोकूँ अश्क़ों को यूँ बेवज़ह बहने से,
एक चाहत सी बन गयी है तू मेरी,
नाज़ों से संभाला था काँच से दिल को,
इक, कैसे बिखर जाऊं यूँ ही,
कैसे रोकूँ साँसों से बिछड़ने से,
एक आदत सी बन गयी है तू मेरी ।
ये रात न होती…
काश ये रात न होती,
तकिये पर फिर बरसात न होती,
न यादें घर करती, न चोट बार-बार होती,
काश ये रात न होती,
तकिये पर फिर बरसात न होती ।
माना ख़ता थी मेरी,
साँसों को मिली थी सज़ा तेरी,
फिर क्यूँ गुजरी रात ऐसी,
काश ये रात न होती,
तकिये पर फिर बरसात न होती ।।
एहसास लिए चलता हूँ…
भीड़ में भी एक एहसास लिए चलता हूँ,
शायद कुछ ख़ास लिए चलता हूँ,
तन्हा हो कर भी तन्हा नहीं,
ऐसा कुछ ख़ास लिए चलता हूँ,
भीड़ में भी एक एहसास लिए चलता हूँ ।
क्यूँ तेरे होने की वजह नहीं मिलती,
क्यूँ तुझे खोने की दिल में जगह नहीं मिलती,
न हो कर भी एक एहसास लिए चलता हूँ,
शायद कुछ ख़ास लिए चलता हूँ,
भीड़ में भी एक एहसास लिए चलता हूँ ।।
रात कैसे आएगी…
तुम न आओगे तो रात कैसे आएगी,
रातों में लिपटी सौगात कैसे आएगी,
दिन तो कट ही जाएगा किसी तरह,
तुम न आये तो ये रात कैसे जायेगी ।
रात भर जलती रही ये निगाहें मेरी,
आज जाना इश्क़ की ख़लिश भी क्या चीज़ है,
सारा शहर सोता रहा सिसकियों पर मेरी,
आज जाना इश्क़ की तपिश भी क्या चीज़ है ।
मरता रहा तिल-तिल कर उसके लिए,
जिसको रश्क़ भी न रहा मेरे होने का,
गीला तकिया रहा चीखता रात भर,
आज जाना इश्क़ की ख़लिश भी क्या चीज़ है ।।
आदत...
कैसे रोकूँ तुझको खुद से बिछड़ने से,
एक आदत सी बन गयी है तू मेरी,
कैसे रोकूँ अश्क़ों को यूँ बेवज़ह बहने से,
एक चाहत सी बन गयी है तू मेरी,
नाज़ों से संभाला था काँच से दिल को,
इक, कैसे बिखर जाऊं यूँ ही,
कैसे रोकूँ साँसों से बिछड़ने से,
एक आदत सी बन गयी है तू मेरी ।
ये रात न होती…
काश ये रात न होती,
तकिये पर फिर बरसात न होती,
न यादें घर करती, न चोट बार-बार होती,
काश ये रात न होती,
तकिये पर फिर बरसात न होती ।
माना ख़ता थी मेरी,
साँसों को मिली थी सज़ा तेरी,
फिर क्यूँ गुजरी रात ऐसी,
काश ये रात न होती,
तकिये पर फिर बरसात न होती ।।
एहसास लिए चलता हूँ…
भीड़ में भी एक एहसास लिए चलता हूँ,
शायद कुछ ख़ास लिए चलता हूँ,
तन्हा हो कर भी तन्हा नहीं,
ऐसा कुछ ख़ास लिए चलता हूँ,
भीड़ में भी एक एहसास लिए चलता हूँ ।
क्यूँ तेरे होने की वजह नहीं मिलती,
क्यूँ तुझे खोने की दिल में जगह नहीं मिलती,
न हो कर भी एक एहसास लिए चलता हूँ,
शायद कुछ ख़ास लिए चलता हूँ,
भीड़ में भी एक एहसास लिए चलता हूँ ।।
रात कैसे आएगी…
तुम न आओगे तो रात कैसे आएगी,
रातों में लिपटी सौगात कैसे आएगी,
दिन तो कट ही जाएगा किसी तरह,
तुम न आये तो ये रात कैसे जायेगी ।
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