चलो आज एक कलाम कहता हूँ,
कुछ अधूरा सा उसके नाम कहता हूँ,
जो छोड़ गया था तन्हा राहों में,
दर्द की आह न सुनी अपनी चाहों में,
कुछ तन्हा, कुछ बेनाम कहता हूँ,
चलो एक कलाम कहता हूँ ।
आँखों के दरिया में डूबा रहता हूँ,
वो होगी मेरी हर पल ये कहता हूँ,
भीड़ में क्यूँ तन्हा रहता हूँ,
फिर क्यूँ मुझसे "मैं" ही दूर रहता हूँ,
चलो एक कलाम कहता हूँ,
कुछ अधूरा सा उसके नाम कहता हूँ ।।
कुछ अधूरा सा उसके नाम कहता हूँ,
जो छोड़ गया था तन्हा राहों में,
दर्द की आह न सुनी अपनी चाहों में,
कुछ तन्हा, कुछ बेनाम कहता हूँ,
चलो एक कलाम कहता हूँ ।
आँखों के दरिया में डूबा रहता हूँ,
वो होगी मेरी हर पल ये कहता हूँ,
भीड़ में क्यूँ तन्हा रहता हूँ,
फिर क्यूँ मुझसे "मैं" ही दूर रहता हूँ,
चलो एक कलाम कहता हूँ,
कुछ अधूरा सा उसके नाम कहता हूँ ।।
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