माँ ने सुबह उठ कर,
एक लम्बी डांट लगा दी थी,
दो अश्क़ बहा कर,
मेरे मन में आस जगा दी थी,
लड़ मैं रहा था साँसों से,
चोटिल वो हो जाती थी,
रो-रो कर मुझको,
तन से यूँ लगाती थी,
बस नहीं चलता जो मुझ पर,
तो गुस्से में झल्लाती थी,
मुझे तड़पता देख कर,
रोते में चिल्लाती थी,
दो अश्क़ बहा कर,
लिखने की आस जगा दी थी,
माँ ने सुबह उठ कर,
एक लम्बी डांट लगा दी थी ।
वो पलट-पलट कर देखे मुझको,
गुस्से में चिल्लाती थी,
सांसें जो उखड़े मेरी,
तो धीरे से सहलाती थी,
भर कर ममता का दामन,
मुझे सीने से लगाती थी,
बस नहीं चलता जो मुझ पर,
तो गुस्से में चिल्लाती थी ।।
मैं रातों में बैठा रहता,
माँ से ये वादा कहता,
ध्यान रखूँगा अपना,
क्यूँ है तुमको जगना,
वो कहती कान पकड़ मेरा,
माँ हूँ, तू लाड़ला अपना,
और कह कर इतना,
गुस्से में रो जाती थी,
भर कर ममता का दामन,
मुझे सीने से लगाती थी,
बस नहीं चलता जो मुझ पर,
तो गुस्से में चिल्लाती थी,
माँ ने सुबह-सुबह उठ कर,
एक लम्बी डांट लगा दी थी ।।।
एक लम्बी डांट लगा दी थी,
दो अश्क़ बहा कर,
मेरे मन में आस जगा दी थी,
लड़ मैं रहा था साँसों से,
चोटिल वो हो जाती थी,
रो-रो कर मुझको,
तन से यूँ लगाती थी,
बस नहीं चलता जो मुझ पर,
तो गुस्से में झल्लाती थी,
मुझे तड़पता देख कर,
रोते में चिल्लाती थी,
दो अश्क़ बहा कर,
लिखने की आस जगा दी थी,
माँ ने सुबह उठ कर,
एक लम्बी डांट लगा दी थी ।
वो पलट-पलट कर देखे मुझको,
गुस्से में चिल्लाती थी,
सांसें जो उखड़े मेरी,
तो धीरे से सहलाती थी,
भर कर ममता का दामन,
मुझे सीने से लगाती थी,
बस नहीं चलता जो मुझ पर,
तो गुस्से में चिल्लाती थी ।।
मैं रातों में बैठा रहता,
माँ से ये वादा कहता,
ध्यान रखूँगा अपना,
क्यूँ है तुमको जगना,
वो कहती कान पकड़ मेरा,
माँ हूँ, तू लाड़ला अपना,
और कह कर इतना,
गुस्से में रो जाती थी,
भर कर ममता का दामन,
मुझे सीने से लगाती थी,
बस नहीं चलता जो मुझ पर,
तो गुस्से में चिल्लाती थी,
माँ ने सुबह-सुबह उठ कर,
एक लम्बी डांट लगा दी थी ।।।
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