लोगों की कतार लगी थी,
भीड़ ये अपरम्पार लगी थी,
एक ढोंगी बाबा से मिलने को,
भीड़ में हाहाकार मची थी,
श्रद्धा में उमड़ी काया थी,
जून में जलती छाया थी,
हुजूम की जय-जयकार लगी थी,
लोगों की कतार लगी थी ।
कोई संत नहीं वो ढोंगी था,
भक्षी, कष्तन, वो भोगी था,
बालाओं से घिर कर,
वो भ्रम्चार्य का ढोंगी था,
मोह-माया को तज कर भी,
वो भूखा, मोह का रोगी था,
उसकी, सुबह जो तपती प्यासी थी,
और रात बड़ी विलासी थी,
आभूषण, श्रद्धा के गहने,
उसकी बड़ी सी कुटिया में रहने,
कुटिल चेलों की कतार लगी थी,
भीड़ ये अपरम्पार लगी थी,
एक ढोंगी बाबा से मिलने को,
हुजूम में जय-जयकार लगी थी ।।
सब, भीड़ में अंधे खोये से,
श्रद्धा-भक्ति में रोये से,
जानते-बूझते हुए भी,
भेड़ की अंधी चाल चली थी,
वो बैठा लूट-खसोट रहा,
मुर्दों से मांस भी नोच रहा,
जैसे कोई लचर-व्यवस्था पर,
"सरकारी" सा कोई जोंक रहा,
पर, जाने क्यूँ उस ढोंगी पर,
श्रद्धा उमड़ी बार पड़ी थी,
लोगों की कतार लगी थी,
भीड़ ये अपरम्पार लगी थी,
एक ढोंगी बाबा से मिलने को,
हुजूम में जय-जयकार लगी थी ।।।
भीड़ ये अपरम्पार लगी थी,
एक ढोंगी बाबा से मिलने को,
भीड़ में हाहाकार मची थी,
श्रद्धा में उमड़ी काया थी,
जून में जलती छाया थी,
हुजूम की जय-जयकार लगी थी,
लोगों की कतार लगी थी ।
कोई संत नहीं वो ढोंगी था,
भक्षी, कष्तन, वो भोगी था,
बालाओं से घिर कर,
वो भ्रम्चार्य का ढोंगी था,
मोह-माया को तज कर भी,
वो भूखा, मोह का रोगी था,
उसकी, सुबह जो तपती प्यासी थी,
और रात बड़ी विलासी थी,
आभूषण, श्रद्धा के गहने,
उसकी बड़ी सी कुटिया में रहने,
कुटिल चेलों की कतार लगी थी,
भीड़ ये अपरम्पार लगी थी,
एक ढोंगी बाबा से मिलने को,
हुजूम में जय-जयकार लगी थी ।।
सब, भीड़ में अंधे खोये से,
श्रद्धा-भक्ति में रोये से,
जानते-बूझते हुए भी,
भेड़ की अंधी चाल चली थी,
वो बैठा लूट-खसोट रहा,
मुर्दों से मांस भी नोच रहा,
जैसे कोई लचर-व्यवस्था पर,
"सरकारी" सा कोई जोंक रहा,
पर, जाने क्यूँ उस ढोंगी पर,
श्रद्धा उमड़ी बार पड़ी थी,
लोगों की कतार लगी थी,
भीड़ ये अपरम्पार लगी थी,
एक ढोंगी बाबा से मिलने को,
हुजूम में जय-जयकार लगी थी ।।।
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