हर कोई अदा करता है फ़र्ज़-ए-अजनबीपन का यहाँ,
कोई अभिनव नहीं मिलता दिल से इश्क़ करने वाला ।
बड़ी परेशानियों को भी तू हँस कर मना लेती है,
ए माँ मैं तेरा क्या शुक्रिया-अदा करूँ ।
एक दिली मशवरा देता हूँ रख लीजिये,
यूँ मेरे लफ़्ज़ों से इतनी दिल्लगी अच्छी नहीं ।
थक कर गुज़र ही गया दिन भी मेरा,
मानो थम-थम कर गुज़री हो ये ज़िन्दगी ।
इश्क़ का फ़ितूर भी कितना अच्छा था अभिनव,
कि, हँसते भी रहा मैं और रो भी न सका ।
बहुत चोटें खाई है इस नन्हे से दिल पे,
फिर भी टूट कर बिखरता नहीं ।
सफ़र-दर-सफ़र चलता रहा दुआओं का सिलसिला,
बस मैं ही नहीं मिला इस सफ़र में ।
मिल ही जाते है सफ़र में दुआ-सलाम वाले,
पर वो नहीं मिलता जिस से दिल मिला हो ।
ढल जाना चाहता हूँ उस सूरज की तरह,
जो कल न निकले फिर सुबह के लिए ।
रिश्ता पुराना है गम से मेरा,
यूँ नहीं पथराई है आँखें मेरी ।
छुपा बैठा मुझसे नज़रें वो ऐसे,
जैसे बरसों का रो कर आया हो ।
कितना लम्बा है ये सफ़र,
चार कन्धों की ख़ातिर ।
क्यूँ मौत भी नहीं मुनासिब मुझे,
क्या ज़िन्दगी के इतने गुनाह है मुझ पर ।
तुम न भुगतो वो ज़ख्म कभी,
जो मैं जी रहा हूँ लम्हा-लम्हा ।
हालात-ए-इश्क़ पर किसका कहाँ ज़ोर है अभिनव,
हर कोई छलता है यहाँ इक दिल्लगी की ख़ातिर ।
खुश हो जाता हूँ जब भी मिलता हूँ,
तुझसे मिल कर एक अजब सा एहसास होता है ।
है कमबख्त़ न-समझो का शहर,
इक मैं ही यहाँ लफ्जों का भरा ।
बहुत से मंज़र गुजरेंगे सर-ए-राह में,
फिर भी चलते रहना ही ज़िन्दगी है ।
बहुत मुफ़लिसी से गुज़रे है बेज़ारी के दिन भी,
कुछ मेरे गुनाह, कुछ तेरे करम है कि जिन्दा हूँ ।
बड़ी आरज़ू में गुज़री थी वो रात,
फ़कत तेरे लफ़्ज़ों की ख़ातिर ।
वो पूछते है मेरे लिखने का सबब,
और मैं कहता हूँ की ये उसकी (खुदा) खता है ।
बड़ा तन्हा होता है एक-एक लम्हा तुझ बिन,
ये मैं नहीं मेरी तन्हाई कहती है ।
बहुत नुक्सान है दिलों की सौदेबाज़ी में,
कोई आशिक़ नहीं देखा यहाँ खुश होते हुए ।
सूरत से नहीं सीरत से तौलो अभिनव,
मैं बिकता नहीं बाज़ारों में आसानी से ।
मैं कह लेता हूँ तुमसे दिल की बात,
क्यूंकि, दिल...दिल है, चेहरा नहीं ।
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