Thursday, June 12, 2014

आईना...

आईने से भी नफ़रत हो गयी कैसी,
जाने कैसी मोहब्बत हो गयी ऐसी,
उठ-उठ कर रोने लगा रातों को,
वाह री मोहब्बत हो गयी कैसी,
वो छोड़ गया मुझको, कोई गम नहीं,
कैसे मैं छोडू उसको आफ़त हो गयी ऐसी,
जाने मोहब्बत हो गयी ऐसी,
आईने से भी नफ़रत हो गयी कैसी ।

अभी तो जीना सीखा था,
खुशियों को "अपना" कहना सीखा था,
फिर क्यूँ, उसको मुझसे नफ़रत हो गयी कैसी,
जाने कैसे मोहब्बत हो गयी ऐसी,
क्यूँ अपना इतना मान लिया,
हर बातों पर "जान" दिया,
फिर भी उसने ठुकरान दिया,
मुझे मोहब्बत का ज्ञान दिया,
अभिनव, क्यूँ मोहब्बत हो गयी ऐसी,
खुद से ही नफ़रत हो गयी कैसी,
उठ-उठ कर रोने लगा रातों को,
वाह री मोहब्बत हो गयी कैसी ।।

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