Thursday, June 12, 2014

मनचली हवाओं ने...

कल, मनचली हवाओं ने शहर नेस्तनाबूत कर दिया,
बारिश ने भी अठखेलियाँ खेली, और शहर सारा तर दिया,
कुछ झोपड़े उड़े, बस्तियों को वीरान सा कर दिया,
कल, मनचली हवाओं ने, शहर नेस्तनाबूत कर दिया ।

बुजुर्ग पेड़ों की टूटी अपनी कहानी थी,
उजड़े घोसले और ज़िन्दगी बेमानी थी,
कुछ देर के मंज़र ने, गलियों को शमशान ऐसा कर दिया,
मानो सदियों से बंज़र हो ज़मीन उसको भी बंज़र कर दिया,
बारिश ने भी अठखेलियाँ खेली, और शहर सारा तर दिया,
कल, मनचली हवाओं ने, शहर नेस्तनाबूत कर दिया ।।

मैं, स्तब्ध था ख़्यालों में,
उलझे-उलझे सवालों में,
कि, मौला ये तूने क्या कर दिया,
और देखा, बूढ़े पेड़ की दरख्तों में एक नन्हा पौधा कर दिया,
जहाँ, गिरा कर बड़े पेड़ों को, शमशान सा कर दिया,
वहीं, पेड़ों की कोपलों में जीवन भी भर दिया,
मैं ये तकता रहा कि जाने ये क्या कर दिया,
मौसम के इस बदले रुख़ ने मेरे लिखने में क्या बल दिया,
बारिश ने भी अठखेलियाँ खेली, और शहर सारा तर दिया,
कल, मनचली हवाओं ने, शहर नेस्तनाबूत कर दिया ।।

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