तराश-इ-लफ्ज़ ग़ालिब-इ-कलम उकेरी है,
आज मुद्दत बाद मैंने फिर कलम उठाया है ।
आदत-इ-शराब भी शौक-इ-कमाल है,
न छोड़ी जाती है, न पकड़ पाते है ।
उम्र-ए-इश्क गुज़ार दी, इंतज़ार-ए-इज़हार में,
अब ढलती उम्र में दिल्लगी अच्छी नहीं ।
नासूरों की ख़बर तब लगी, जब ख़ाक-ए-जिगर हो गया,
हम तो गोया बावस्ता ही जीया करते रहे ।
आज मुद्दत बाद मैंने फिर कलम उठाया है ।
आदत-इ-शराब भी शौक-इ-कमाल है,
न छोड़ी जाती है, न पकड़ पाते है ।
उम्र-ए-इश्क गुज़ार दी, इंतज़ार-ए-इज़हार में,
नासूरों की ख़बर तब लगी, जब ख़ाक-ए-जिगर हो गया,
हम तो गोया बावस्ता ही जीया करते रहे ।



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