Tuesday, February 5, 2013

खबर...

न घर की खबर थी, न मंज़िल का पता,
जहाँ दिल रम गया, वही मिल गया खुदा,
रात गुज़री थी मयखाने में, तेरी इबादत में,
आज जागा हूँ जो मिल गया खुद का पता ।

किरणों के संग-संग जो ताज़गी सी आई है,
लालिमा के संग, खुशबू नयी लायी है,
चमकती काया, आज मुझको भायी है,
किरणों के संग-संग जो ताज़गी सी आई है |

मेरी ज़िन्दगी का सबब वो पूछते रहे ता-उम्र,
मैं कुछ भी न कह सका एक बात के सिवा ।

मुश्किलें लाख मिले ज़माने में,
कदम, डगमगाने न पाए जाने में,
तू थकना न कभी राह-इ-मंजिल तक,
अभी तो शुरुआत की है मंजिल पाने की ।

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