Tuesday, February 26, 2013

अब, रुक जाना चाहता हूँ...

थक गया हूँ चलते-चलते, अब रुक जाना चाहता हूँ,
तन गया था बढ़ते-बढ़ते, अब झुक जाना चाहता हूँ,
आस और उम्मीद की किरणों का दामन छोड़,
भस्म हो राख़ सा, हवाओं में मिल जाना चाहता हूँ,
थक गया हूँ चलते-चलते, अब रुक जाना चाहता हूँ ।

बोझिल पड़ गए पैरों से, तर जाना चाहता हूँ,
झुके हुए इन कन्धों से, थक जाना चाहता हूँ,
थक गया हूँ आस से लड़ते-लड़ते, अब मिट जाना चाहता हूँ,
तन गया था बढ़ते-बढ़ते, अब झुक जाना चाहता हूँ,
आस और उम्मीद का दामन छोड़,
भस्म हो राख़ सा, हवाओं में मिल जाना चाहता हूँ,
थक गया हूँ चलते-चलते, अब रुक जाना चाहता हूँ ।।

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