Monday, February 25, 2013

मैं रो लिया...

तेरी यादों के साये, जब-जब घर कर आये,
मैं रो लिया,
तनहा था, था अकेला,
मैं सो लिया,
उदासी के मंज़र में, जिंदा लाश के इस खंडर में,
मैं खो लिया,
तेरी यादों के साये, जब-जब घर कर आये,
मैं रो लिया ।

फूल जो मुरझा गए थे, बाग़ भी जो सुस्त थे,
धूप जलने को थी आतुर, आस भी जो रूष्ट थी,
आस के धागे जले थे, राख़ अरमान हो गए,
बाग़ की रंगीनियत भी, शाम तनहा हो गयी,
"मैं", उदासी के इस मंज़र में, जिंदा लाश के इस खंडर में,
खो लिया,
तनहा था, था अकेला,
मैं सो लिया,
तेरी यादों के साये, जब-जब घर कर आये,
मैं रो लिया ।।

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