उम्र-ए-इश्क़ की रुसवा हुई आज,
तब दिल थाम, उठ चले,
सिलसिला-ए-मोहब्बत थमा आज,
तब रूह थाम, घर चले,
सदियों से प्यासे थे, जिस आरज़ू-ए-मोहब्बत के,
वो रुसवा हुई आज, तो उठ चले,
उम्र-ए-इश्क़ की ख़त्म हुई आज,
तब दिल थाम, उठ चले ।
सिलसिला-ए-मोहब्बत थमा आज,
तब रूह थाम, घर चले,
सदियों से प्यासे थे, जिस आरज़ू-ए-मोहब्बत के,
वो रुसवा हुई आज, तो उठ चले,
उम्र-ए-इश्क़ की ख़त्म हुई आज,
तब दिल थाम, उठ चले ।
आरज़ू-ए-इश्क़ तो अब भी दफ़न थी,
दिल के वीरान कोनो में,
सांसें अब भी जिंदा थी,
मुर्दा ज़िस्म होने में,
सिलसिला-ए-मोहब्बत थमा आज,
तब रूह थाम, घर चले,
उम्र-ए-इश्क की रुसवा हुई आज,
तब दिल थाम, उठ चले ।।
दिल के वीरान कोनो में,
सांसें अब भी जिंदा थी,
मुर्दा ज़िस्म होने में,
सिलसिला-ए-मोहब्बत थमा आज,
तब रूह थाम, घर चले,
उम्र-ए-इश्क की रुसवा हुई आज,
तब दिल थाम, उठ चले ।।
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