Sunday, February 10, 2013

घर का पता पूछता हूँ...












चलते-चलते बहुत दूर आ पहुंचा, तो घर का पता पूछता हूँ,
ओझिल हो गयी सारी यादें, तो भीगी पलकों का पता पूछता हूँ,
घर तो पहुंचा ही नहीं कभी, क्यूँ मकां हर जगह ढूंढता हूँ,
चलते-चलते बहुत दूर आ पहुंचा, तो घर का पता पूछता हूँ ।

बह गया था "मैं" जाने किस अंदाज़ में,
सांसें चल रही थी बस जिस्म के लिबास में,
अपनों के चेहरों को खोजते-खोजते, खुद का चेहरा ढूंढता हूँ,
ओझिल हो गयी साड़ी यादें, तो भीगी पलकों का पता पूछता हूँ,
चलते-चलते बहुत दूर आ पहुंचा, तो घर का पता पूछता हूँ ।

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