Wednesday, February 20, 2013

कमज़र्फ हो...

कमज़र्फ हो कह ही दिया आखिर,
अब तुझसे मेरा वास्ता नहीं,
पर कैसे समझाऊ खुद को,
कि मुझमे कुछ मेरा बचा नहीं ।

दर्द भरा था दिल के अन्दर,
रात रुकी थी आँखों में,
याद भरी थी दिल के अन्दर,
अश्क़ रुके थे आँखों में,
कह कर तुझसे इतना सब कुछ, दिल का रिश्ता तोड़ दिया,
और अन्दर ही अन्दर, अपनी रूह को ही मैं छोड़ गया,
अश्क़ भरे दे आँखों में,
और दर्द भरा था यादों में,
टूट चुका था खुद के अन्दर,
आह भरी थी साँसों में,
दर्द भरा था दिल के अन्दर,
रात रुकी थी आँखों में,
याद भरी थी दिल के अन्दर,
अश्क़ रुके थे आँखों में ।

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